पाकिस्तान में वकीलों को दूसरी बार मिली कामयाबी
इससे पहले जून 2008 में वे पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ द्वारा बर्खास्त किए गए देश के प्रधान न्यायाधी इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी और नवंबर 2007 में देश में आपातस्थिति लागू होने के बाद बर्खास्त किए गए उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की बहाली में नाकाम रहे थे। लेकिन उन्होंने मुशर्रफ को सत्ता से अपदस्थ करने में कामयाबी हासिल की थी।
इस बार वे चौधरी और उनके साथ-साथ 60 बर्खास्त न्यायाधीशों की बहाली की मांग पर सरकार को झुकाने में कामयाब रहे हैं। लेकिन इस बार बात सिर्फ इतनी ही नहीं रही और इस आंदोलन ने देश में नए राजनीतिक समीकरणों का जन्म दिया और प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से ज्यादा सशक्त होकर उभरे।
इस आंदोलन से यह भी साफ हो गया है कि जरदारी ज्यादा दिनों तक सरकार को निजी जागीर बनाकर नहीं रख पाएंगे और अपनी मनमर्जी नहीं कर सकेंगे।
ऐसी भी खबरें हैं जरदारी कुछ महत्वपूर्ण अधिकार प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंपना चाहते हैं और उसके बाद स्वयं देश के प्रधानमंत्री पद पर आसीन होना चाहते हैं।
इन अधिकारों में सेना प्रमुखों, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशोंे की नियुक्ति का अधिकार तथा संघीय एवं प्रांतीय सरकारों की बर्खास्तगी का अधिकार शामिल है।
मुशर्रफ ने संविधान में विवादास्पद 17वां संशोधन कर ये अधिकार राष्ट्रपति के दायरे में ले आए थे। वकीलों के आंदोलन में इस संशोधन को भी रद्द करने की मांग की गई है। यदि ऐसा होता है तो जरदारी के पास रस्मी अधिकार ही रह जाएंगे।
इसके अलावा इस आंदोलन ने पूर्व प्रधानमंत्री एवं पाकिस्तान मुस्लिम लीग के अध्यक्ष नवाज शरीफ की स्थिति भी मजबूत की है और इससे पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में वापसी के लिए उनकी मोलभाव की हैसियत भी बढ़ी है।
यह भी देखना रोचक होगा कि चौधरी कितनी जल्दी शरीफ बंधुओं के खिलाफ सुनाए गए फैसले को पलट पाते हैं।
एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या चौधरी जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमों की सुनवाई दोबारा शुरू करेंगे। यदि ऐसा हुआ तो इससे जरदारी के राजनीतिक करियर का पटाक्षेप हो जाएगा।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।