रिश्ता न निभा पाने की दलील तलाक का आधार नहीं हो सकती : सर्वोच्च न्यायालय
नई दिल्ली, 4 मार्च (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि हिंदू विवाह कानून के तहत पति-पत्नी के बीच रिश्ता न निभा पाने की दलील तलाक का आधार नहीं बन सकता।
एक हिंदू पति की तलाक याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति मरक डेय काटजू और न्यायमूर्ति वी. एस. सिरपुरकर की खंडपीठ ने कहा कि 1955 का हिंदू विवाह कानून शादी तोड़ने के लिए 'रिश्ता नहीं निभा पाने की दलील' को आधार के रूप में स्वीकार नहीं करता।
खंडपीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय सहित कोई भी अदालत रिश्ता नहीं निभा पाने की दलील पर तलाक मंजूर नहीं कर सकती। यह तभी हो सकता है जब इस दलील को तलाक के लिए कानूनन आधार मान लिया जाए और यह काम केवल विधायिका कर सकती है।
पिछले महीने की 27 तारीख को दिए गए इस फैसले में खंडपीठ ने कहा, "हिंदू विवाह कानून 1955 की धारा 13 में तलाक के कई आधार बताए गए हैं जैसे निर्दयता, व्याभिचार, परित्याग आदि। लेकिन रिश्ता नहीं निभा पाने की दलील कोई आधार नहीं है।"
खंडपीठ ने कहा कि यदि सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व में इस आधार पर तलाक मंजूर किया हो तो उसे गलती करार दी जा सकती है।
तलाक चाहने वाले पति के वकील ने न्यायालय में तर्क दिया कि सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों में इस आधार पर तलाक दिया है।
दिल्ली निवासी पति ने पत्नी पर क्रूर व्यवहार का आरोप लगाते हुए पहले निचली अदालत में तलाक की अर्जी दाखिल की थी।
लेकिन निचली अदालत और उच्च न्यायालय में इस बात के जाहिर होने के बाद कि पति ही पत्नी को क्रूर व्यवहार के लिए विवश करता है, याचिका खारिज हो गई थी।
इसके बाद याची ने सर्वोच्च न्यायालय में रिश्ता न निभा पाने की दलील पर तलाक की अपील की। इसके पीछे उसने तर्क दिया था कि उसकी पत्नी उसके साथ 25 दिन से ज्यादा नहीं रही है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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