नवीन चावला होंगे अगले सीईसी, राष्ट्रपति ने उन्हें हटाने से किया इंकार (राउंडअप)
राष्ट्रपति के इस फैसले को विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 'दुर्भाग्यपूर्ण' करार दिया है जबकि कांग्रेस ने इसे स्वाभाविक फैसला बताते हुए सीईसी की सिफारिशों को 'सनकभरा' करार दिया है।
गोपालस्वामी 20 अप्रैल को अवकाश प्राप्त करने वाले हैं। इसके बाद चावला सबसे वरिष्ठ चुनाव आयुक्त होंगे, जो अप्रैल-मई में संभावित आम चुनाव को सम्पन्न करवाएंगे। चुनाव की घोषणा शीघ्र की जा सकती है।
सीईसी ने जनवरी में चावला को हटाने की सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेजी थी। इससे संवैधानिक संस्था में मतभेद उजागर होने के साथ कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) और भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के बीच बयान युद्ध छिड़ गया था।
भाजपा ने तब कहा था कि चावला को बर्खास्त किया ही जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने हमेशा पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया है, जबकि कांग्रेस इसे खारिज करते हुए कहती रही कि विपक्षी दल चुनावों से पहले इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देना चाहते हैं।
राष्ट्रपति भवन में विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी अर्चना दत्ता ने कहा कि राष्ट्रपति ने चुनाव आयुक्त चावला को बर्खास्त करने की गोपालस्वामी की सिफारिश सहित विभिन्न पहलुओं पर 'गंभीरतापूर्वक विचार' करने के बाद यह फैसला लिया। मुख्य चुनाव आयुक्त ने चावला पर पक्षपात का आरोप लगाया था।
दत्ता ने आईएएनएस से कहा, "सीईसी की रिपोर्ट, सरकार के सुझावों, संवैधानिक प्रावधानों व सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के बाद राष्ट्रपति इस फैसले पर पहुंची और गोपालस्वामी की सिफारिश खारिज करने के सरकार के सुझाव को स्वीकार कर लिया।"
राष्ट्रपति के फैसले पर निराशा जाहिर करते हुए भाजपा उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने आईएएनएस से कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है।"
उन्होंने कहा, "चुनाव करीब है, ऐसे में आयोग में कोई बंटवारा नहीं होना चाहिए ताकि जनता निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव की उम्मीद कर सके।"
उन्होंने राष्ट्रपति के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि यह अच्छा संकेत नहीं है।
उधर, कांग्रेस ने राष्ट्रपति के फैसले को स्वाभाविक बताया है। कांग्रेस नेता एम. वीरप्पा मोइली ने कहा कि इस तरह की सिफारिश करने से पहले सीईसी को पहले अपना दिमाग लगाना चाहिए। विशेषकर तब, जब वह अवकाश प्राप्त करने जा रहे हैं। इससे सकारात्मक संकेत नहीं जाता है।
ऐसी ही प्रतिक्रिया मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की ओर से आई है। माकपा पोलिट ब्यूरो के सदस्य एम. के. पंधे ने कहा, "एक चीज स्पष्ट है कि सीईसी एक राजनीतिक फैसले के बारे में बात कर रहे थे। मेरे विचार से राष्ट्रपति ने सही फैसला किया है।"
चावला को हटाने संबंधी विवाद मार्च 2006 से चला आ रहा है। उस वक्त भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और 204 अन्य सांसदों ने चावला को हटाने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम को ज्ञापन सौंपा था।
इस ज्ञापन को राष्ट्रपति कार्यालय ने कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार के पास भेजा था, जिसे उसमें कोई दम नहीं दिखा।
इसके बाद भाजपा इस मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय तक ले गई लेकिन अदालत उसके तर्को से सहमत नहीं हुई थी और पार्टी ने अगस्त 2007 में याचिका वापस ले ली थी।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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