'स्लमडॉग मिलियनेयर' बनने के लिए..

By Staff
Google Oneindia News

मुझे गिरफ्तार कर लिया गया है- एक टेलीविजन क्वि ज जीतने के लिए। कल आधी रात को, जब आवारा कुत्ते तक सो चुके थे, वो मेरे घर आ धमके। उन्होंने भड़भड़ाकर मेरा दरवाजा तोड़ डाला, मुझे हथकड़ी लगाई और खींचकर लाल बत्ती वाली जीप में बैठा लिया। कोई शोर-शराबा नहीं हुआ। झोपड़पट्टी वाले चूं तक नहीं किए। केवल इमली के पेड़ पर बैठा वह पुराना उल्लू ही मेरी गिरफ्तारी पर हूकता रहा।

धारावी में गिरफ्तारी उतनी ही आम है जितनी कि मुंबई की लोकल ट्रेनों में जेबतराशी। कोई दिन ऐसा नहीं बीतता जब पुलिस किसी-न-किसी बेचारे को पकड़कर नहीं ले जाती। कुछ लोग तो ऐसे हाथ-पैर पटकते और चीखते-चिल्लाते हैं कि पुलिस उन्हें घसीटकर थाने ले जाती है। वहीं कुछ लोग चुपचाप चले जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे वे पुलिस का इंतजार ही कर रहे हों। लाल बत्तीवाली जीप के आने से उन्हें कोई राहत-सी मिल जाती हो।

अब सोचता हूं, शायद मुझे भी हाथ पैर पटकने चाहिए थे और चीख-चीखकर खुद को बेगुनाह बताना चाहिए था। कुछ शोर-शराबा होता तो शायद पड़ोसी हरकत में आते, लेकिन इससे कुछ होता नहीं। अगर कुछ पड़ोसी जाग भी जाते, तो भी वे मेरे बचाव में खड़े होने वाले नहीं थे। नींद भरी आंखों से वे सारा तमाशा देखते और उनमें से कोई-न-कोई वहीं रटा-रटाया सा फिकरा कस देता- लो, एक और गया। बस, जम्हाई लेते हुए फिर बिस्तर पर पसर जाते।

एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-बस्ती से मेरी धर-पकड़ उनकी जिंदगी पर क्या असर डालती? सुबह पानी के लिए वैसी ही लंबी लाइन लगेगी और रोज की तरह साढ़े सात बजे वाली लोकल ट्रेन पकड़ने के लिए वही धक्का-मुक्की होगी।

कोई यह पता लगाने की भी कोशिश नहीं करेगा कि मुझे किस जुर्म के लिए गिरफ्तार किया गया है। असलियत तो यह है कि जब दो पुलिसवाले मेरी झुग्गी में धड़धड़ाते हुए घुस आए तो मैंने भी नहीं सोचा। जब आपका पूरा-का-पूरा वजूद ही गैर-कानूनी हो, जब आप पाई-पाई के लिए मोहताज हों और आपकी जिंदगी गटर की नाली के कीड़े से भी बदतर हो, तब कभी-न-कभी गिरफ्तार होना तो जैसे नियति का हिस्सा बन जाता है। आप यह यकीन करने लगते हैं कि एक दिन आपके नाम का वारंट भी कट जाएगा और आखिरकार एक लाल बत्तीवाली जीप आपको लेने आ जाएगी!

झोपड़पट्टी में कई लोग यह भी कहेंगे कि मैंने खुद ही यह मुसीबत मोल ले ली। क्या जरूरत थी क्वि ज शो में टांग अड़ाने की? वे लोग उंगली उठाकर याद दिलाएंगे कि धारावी के बड़े-बूढ़ों का कहना है कि हमें गरीबी की लक्ष्मण रेखा कभी पार नहीं करनी चाहिए। आखिर एक कंगाल और अनपढ़ वेटर का क्वि ज शो से क्या लेना-देना? हमें दिमाग का इस्तेमाल करने की छूट नहीं है। हमें तो बस अपने हाथ-पैर ही चलाने हैं।

काश, वे मुझे उन सवालों के जवाब देते हुए देख सकते! शायद खेल में मेरी हाजिर-जवाबी से प्रभावित होकर वे मुझे इज्जत की नजर से देखने लगते। पर दिक्कत ये है कि शो अभी टेलीविजन पर दिखाया ही नहीं गया है। फिर भी यह खबर फैल ही गई कि मैंने कोई बड़ा हाथ मारा है- मानो कोई लॉटरी जीत ली हो। जब मेरे साथी वेटरों ने यह खबर सुनी तो उन्होंने मेरी जीत पर जश्न मनाने का फैसला किया। हम आधी रात तक पीते रहे, नाचते और गाते रहे।

उस रात पहली बार हमने अपने बावर्ची का बासी खाना नहीं खाया, बल्कि मैरीन ड्राइव वाले फाइव स्टार होटल से चिकन-बिरयानी और सींक-कबाब मंगवाए। बार काउंटर वाले बुढ़ऊ ने अपनी बेटी मुझे ब्याहने की पेशकश कर डाली। यहां तक कि हमेशा बात-बात में झल्लाने वाले मैनेजर ने भी मेरी तनख्वाह के बकाया पैसे मुझे हंसते हुए दे दिए। उस रात उसने मुझे कोई गाली भी नहीं दी, न तो 'हरामजादा' कहा और न ही 'हरामी कुत्ता'।

पर अब गोडबोले मुझे इनसे भी गंदी-गंदी गालियां देता है। मैं पुलिस चौकी की छह फीट चौड़ी और दस फीट लंबी कोठरी में उकड़ूं देता है। मैं पुलिस चौकी की छह फीट चौड़ी और दस फीट लंबी कोठरी में उकड़ूं मारे बैठा हूं। कोठरी का दरवाजा जंग से लाल हो चुका है। मेरे ठीक पीछे जंगलेवाली छोटी सी खिड़की से गर्द भरी धूल कोठरी में आ रही है। मैं गरमी और उमस से बेचैन हो रहा हूं। पत्थर के फर्श पर कुचले हुए आम का गूदा बिखरा है, जिस पर मक्खियां भिनभिना रही हैं। एक बेचारा कॉकरोच लड़खड़ाता हुआ मेरे पैरों तक आ गया है। मैं भूख से बेहाल होने लगा हूं। पेट में चूहे कूद रहे हैं।

मुझे बताया गया है कि कुछ देर में मुझे पूछताछ के लिए ले जाया जाएगा। गिरफ्तारी के बाद मुझसे एक बार पहले भी कई सवाल पूछे जा चुके हैं। लंबे इंतजार के बाद कोई मुझे लेने आया- खुद इंस्पेक्टर गोडबोले।

गोडबोले न तो बूढ़ा है और न ही जवान। होगा कोई पैंतालीस के आसपास का। खल्वाट सिर और ऐंठी हुई मूंछें जैसे गोल चेहरे पर अलग से चिपकाई गई हों। टांगें भी जैसे भारी तोंद का वजन ढोते-ढोते जवाब दे गई हों। 'साली मक्खियां' कहते हुए उसने खीझकर मुंह के आसपास मुंडरा रही मक्खियों को मारने की कोशिश की, पर चूक गया।

इंस्पेक्टर गोलबोले का मूड आज ठीक नहीं है। एक तो मक्खियों ने उसकी नाक में दम कर रखा है, ऊपर से यह उमस भरी गरमी। उसके माथे पर पसीना चुहचुहा आया। उसने कमीज की बाजुओं से उसे पोंछा। पर उसे सबसे ज्यादा परेशानी मेरे नाम से है। 'राम मुहम्मद थॉमस-कैसा अजीबोगरीब नाम है, सारे धर्मो का घालमेल करके रख दिया है! क्या तेरी मां समझ नहीं पाई कि तेरा बाप कौन है?' यह सवाल वह पहले भी कई बार कर चुका है।

मैंने इस गाली को नजरअंदाज कर दिया। इस अपमान का मैं आदी हो चुका हूं। पूछताछवाले कमरे के बाहर दो कांस्टेबल मुस्तैदी से खड़े हैं। यह इस बात का सुबूत है कि अंदर कोई बड़ा आदमी है। सुबह यही लोग पान चबाते हुए एक-दूसरे को गंदे चुटकुले सुना रहे थे। गोडबोले ने धक्का देते हुए मुझे कमरे में ठेल दिया। कमरे के अंदर दीवार पर साल भर में हुए अपहरण और हत्याओं का चार्ट लगा है। उसी चार्ट के सामने दो लोग खड़े हैं। उनमें से एक को तो मैंने पहचान लिया।

औरतों की तरह लंबे बालोंवाला यह वही शख्स है, जो क्वि ज शो की रिकॉर्डिग के वक्त प्रेम कुमार को हेडसेट के जरिए सब बता रहा था कि क्या और कैसे करना है। दूसरे आदमी को मैं नहीं जानता हूं। वो कोई फिरंगी है- बिलकुल टकला। बैंगनी से रंग का सूट और नारंगी रंग की टाई पहने। सिर्फ कोई विदेशी गोरा ही इतनी गरमी में सूट और टाई पहन सकता है। उसे देखकर मुझे कर्नल टेलर की याद आती है।

(प्रभात पेपरबैक्स, नई दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक 'कौन बनेगा अरबपति' से साभार।)

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

**

Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X