गांधी की कृतियों पर स्वत्वाधिकार समाप्त
30 जनवरी को पूरा देश महात्मा का शहीदी दिवस मना रहा है। लेकिन गांधी के शहीद होने के साठ साल बाद गांधी विचार से प्रभावित तमाम लोग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि किसी अधिकृत स्वत्वाधिकारी की अनुपस्थिति में गांधी की अमूल्य धरोहरों की पवित्रता की रक्षा कौन करेगा।
वर्ष 1944 में महात्मा गांधी ने एक लिखित अनुबंध के तहत अहमदाबाद स्थित नवजीवन ट्रस्ट को अपनी संपूर्ण कृतियों का स्वत्वाधिकार सौंप दिया था।
लेकिन देश के स्वत्वाधिकार अधिनियम 1957 के तहत किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के 60 वर्ष बाद उसकी रचनाएं सार्वजनिक संपत्ति हो जाती हैं। इस कानून के अनुसार 1 जनवरी 2009 को गांधी की सभी कृतियों पर से नवजीवन ट्रस्ट का स्वत्वाधिकार समाप्त हो गया।
इसके बाद अब कोई भी प्रकाशक गांधी द्वारा लिखी गई रचनाओं व उनके भाषणों को प्रकाशित करने के लिए स्वतंत्र होगा। ट्रस्ट भी सरकार से स्वत्वाधिकार की अवधि बढ़ाए जाने की मांग करने के पक्ष में नहीं है।
नवजीवन ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी जीतेंद्र देसाई ने अहमदाबाद ने फोन पर बताया, "यदि आप गांधी विचार में विश्वास करते हैं तो स्वत्वाधिकार बढ़ाए जाने की मांग नहीं की जानी चाहिए। हमने इस मुद्दे पर विचार किया है और हम स्वत्वाधिकार की अवधि बढ़ाने की मांग नहीं करेंगे।"
गांधी विचार को अपना जीवन समर्पित करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि गांधी ने स्वत्वाधिकार का कभी समर्थन नहीं किया था।
गांधी स्मारक निधि के सचिव रामचंद्र राही ने कहा, "हर अध्येता को गांधी की रचनाओं को पुनर्प्रस्तुत करने का अधिकार है, लेकिन मूल लेख के साथ छेड़छाड़ करने का अधिकार किसी को भी नहीं है।"
राही ने कहा, "भावी पीढ़ी को गांधी की मूल कृतियां हर हाल में उपलब्ध होनी चाहिए, लेकिन मैं नहीं समझता कि स्वत्वाधिकार की कोई जरूरत है।"
अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम में रहने वाली गांधीवादी दीना पटेल कहती हैं, "यदि आप गांधी के पत्रों व पत्रिकाओं को पढ़ेंगे तो ऐसा लगेगा कि वह अपने विचारों को गलत तरीके से प्रस्तुत किए जाने के डर से स्वत्वाधिकार के पक्ष में थे।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।