आगरा: बाल श्रम पर टिका जूता उद्योग
इतना ही नहीं इन कारखानों में कार्यरत वयस्क श्रमिकों में बढ़ रही शराब की लत कोढ़ में खाज का काम कर रही है।
बड़ी जूता उद्योग इकाइयों ने चूंकि अपने यहां काम की आउटसोर्सिग शुरू कर दी है, लिहाजा वे सीधे तौर पर बाल श्रम के शोषण में शामिल नहीं हैं। लेकिन जो छोटी इकाइयां इनसे काम के ठेके लेती हैं, उनके पास बच्चों से काम कराने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं है।
जहां एक तरफ इन कारखानों में बाल-शोषण निर्बाध गति से जारी है, वहीं कर्मचारियों के बीच बढ़ रही शराब की लत ने सामाजिक कार्यकर्ताओं को गंभीर चिंता में डाल दिया है।
सामाजिक संगठन, हस्त निर्मित जूता उद्योग विकास परिषद के सदस्यों का कहना है कि जूता सिलाई के काम में लगे ये बच्चे ही अपने परिवार की आजीविका के मुख्य आधार हैं।
ऐसे लगभग सभी परिवारों में कम से कम एक सदस्य शराब की लत के कारण तपेदिक (टीबी) या पेट की बीमारियों से पीड़ित है।
जूता कर्मचारियों के कल्याण के लिए काम करने वाली इस परिषद के एक सदस्य नेत्रपाल सिंह कहते हैं कि यदि बच्चों ने काम करना छोड़ दिया तो उनके परिवार के लोग आत्महत्या को मजबूर हो जाएंगे।
नेत्रपाल सिंह सवाल करते हैं, "यदि बच्चे काम करना बंद कर देंगे तो उनके परिवार के बुजुर्गो को दवा व भोजन कौन देगा?"
सिंह ने आईएएनएस को बताया, "गरीबी ने तमाम स्कूली बच्चों को अपने पड़ोस के जूता कारखानों में मजदूरी के लिए मजबूर कर दिया है। कई सारे बच्चे तो अपने घरों में ही जूते के ऊपरी हिस्से की सिलाई में लगे रहते हैं।"
ज्ञात हो कि आगरा के जूता उद्योग में लगभग 200,000 से भी अधिक मजदूर काम करते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।