तिब्बत मुक्ति अभियान का गवाह बन रहा है लखनऊ
अपनी मुहिम के अंतर्गत हिंदुस्तान के अलग-अलग प्रांतों से अपने ऊनी उत्पाद की बिक्री करने यहां आए तिब्बती शरणार्थी हर खरीदार को तिब्बत मुक्ति अभियान का हिस्सा बना रहे हैं। हर खरीद पर ग्राहकों को एक बिल्ला जिस पर सेव तिब्बत फार वर्ल्ड पीस अंकित है, दिया जा रहा है।
तिब्बती शरणार्थी हथकरघा संघ के अध्यक्ष के.डी.टैमिडंग बताते हैं कि यह बिल्ला खरीदारों को मुहिम से जोड़ने के लिए है। हर रोज करीब पांच हजार लोगों तक 'सेव तिब्बत' (जैसा कि बिल्ले पर अंकित है) का संदेश पहुंच रहा है।
इस अनोखी मुहिम का मकसद चीन के प्रति तिब्बती शरणार्थियों के आक्रोश का भी इजहार करना है।
संघ से सिचव टी. ढोंडप कहते हैं कि विश्वभर में चीन तिब्बितयों के मानवाधिकारों का हनन करने के लिए कुख्यात है। हमारी ये मुहिम तिब्बतियों पर चीन के द्वारा किए गये जुल्मों का जवाब है।
हर साल तिब्बती शरणार्थी हथकरघा संघ लखनऊ में सस्ते ऊनी कपड़ों को बेचने के लिए अपने वार्षिक स्टाल लगाता है। इस साल ये तिब्बती स्टाल लखनऊ स्थित रवींद्रालय परिसर में लगे हैं।
ग्राहकों के अतिरिक्त अपनी मुहिम की तरफ उन लोगों का भी ध्यान आकर्षण के लिए भी प्रबंध है जो इन ऊनी कपड़ों को नहीं खरीदते हैं या इन स्टालों पर सिर्फ मन बहलाने के लिए आ रहे हैं। परिसर में घुसते ही जगह-जगह सेव तिब्बत के बोर्ड-बैनरों से सामना हो ही जाता है।
इस समय तकरीबन पचास तिब्बती परिवार इस मुहिम का हिस्सा हैं। ज्यादातर परिवार हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, असम, पंजाब, दिल्ली से आए हैं, जो लगभग चार महीने तक स्टाल लगाते हैं। शहर में इन परिवारों का जमावड़ा अक्टूबर से शुरू हो जाता है।
हरे रंग के बिल्ले से रूबरू होते ही खरीदार भी उत्सुकता जाहिर करते हैं। संघ की महासचिव के. सोनम कहती हैं कि कभी-कभी तो बिल्ला देखते ही कुछ ग्राहक तो सवालों की झड़ी लगा देते हैं और हमारे प्रति सहानुभूति जाहिर कर हमारे प्रयास की सराहना करते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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