विरोधियों पर जीत के बाद शिवराज का अब अपनों से मुकाबला
प्रदेश की 13वीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में भाजपा ने पूर्ण बहुमत हासिल किया है। यह पहला मौका है जब किसी गैर कांग्रेसी दल ने पांच साल शासन करने के बाद फिर सत्ता की कमान संभाली है। इतना ही नहीं लगातार दोबारा मुख्यमंत्री बनने का कीर्तिमान भी चौहान के खाते में गया है।
चौहान ने मुख्यमंत्री के रूप में 12 दिसम्बर को शपथ ले ली थी मगर अब तक मंत्रिपरिषद का गठन नहीं हो पाया है। इसके पीछे भी कई वजहें साफ नजर आ रही हैं। शिवराज अपनी टीम में अधिकतम 33 सदस्यों को और शामिल कर सकते हैं। 22 तो पिछली सरकार के मंत्री जीत कर आ गए हैं और कई वरिष्ठ साथी भी जीतने वालों की सूची में शामिल हैं।
इस तरह जीतने वालों में मंत्री पद के दावेदारों की संख्या 33 से भी आगे निकल रही है। वहीं पूर्व सरकार में मंत्री रहे कई सदस्य आरोपों के घेरे में हैं जिन्हें मंत्रिमंडल में न लेने का दबाव भी चौहान पर है। भोपाल से दिल्ली का कई बार दौरा कर चुके चौहान पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से विचार विमर्श करने के बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं।
मुख्यमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे सभी को संतुष्ट कैसे करें। एक तरफ सक्षम लोगों को मंत्री पद की जिम्मेदारी देने की कोशिश है तो दूसरी ओर पार्टी के निर्देशों के पालन की जवाबदारी। ऐसे में जिन्हें मंत्री पद नहीं मिलता है उनके रोष का भी मुकाबला करना है। इन सबसे बढ़कर कुछ समय बाद होने वाले लोक सभा चुनाव में पार्टी की नैया पार लगाना है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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