सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से क्रीमी लेयर की व्याख्या करने को कहा (लीड-1)
नई दिल्ली, 15 दिसम्बर (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को केंद्र सरकार से उसके उस निर्णय की व्याख्या करने के लिए कहा है, जिसके तहत अन्य पिछड़ी जातियों(ओबीसी) में 450,000 रुपये सालाना आमदनी वाले व्यक्ति को क्रीमी लेयर के दायरे में रखने का निर्णय किया गया है। क्रीमी लेयर के तहत आने वाले ओबीसी के इन लोगों को विभिन्न सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाएगा।
प्रधान न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन व न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह के भीतर 13 अक्टूबर के उसके उस निर्णय के बारे में स्पष्टीकरण मांगा है, जिसमें क्रीमी लेयर के लिए आमदनी की सीमा 250,000 रुपए से बढ़ा कर 450,000 रुपए कर दी गई थी।
खंडपीठ ने सरकार को यह नोटिस जाने माने शिक्षाविद पी.वी. इंदर सेन व नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था नायर सर्विसेस सोसायटी की ओर से दायर याचिका पर जारी किया।
सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि यदि पिछड़े वर्ग के किसी व्यक्ति की सालाना आमदनी कम से कम 450,000 रुपए या इससे अधिक है तो उसे क्रीमी लेयर के दायरे में रखा जाएगा। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को सरकारी नौकरियों या शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश जैसे मामलों में आरक्षण सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाएगा।
ज्ञात हो कि सरकार ने आमदनी की सीमा में परिवर्तन का यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के 10 अप्रैल के फैसले के बाद किया।
सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने 10 अप्रैल के अपने आदेश में ओबीसी के छात्रों के लिए राज्य संचालित उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए 27 प्रतिशत कोटे को तो बहाल कर दिया था, लेकिन इसके साथ ही इस वर्ग के क्रीमी लेयर के छात्रों को कोटे से बाहर रखने के लिए कहा था।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।