जलवायु परिवर्तन का खतरा बहुत अधिक : विशेषज्ञ
पोजाना (पोलैंड), 14 दिसम्बर (आईएएनएस)। जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने में देरी करने पर एक अरब अतिरिक्त लोग पानी की कमी से प्रभावित होंगे, विकासशील देशों में अनाज उत्पादन में कमी आएगी और तटीय क्षेत्र के निवासियों को बाढ़ और तूफान के कारण भारी नुकसान उठाना होगा।
लंदन के इंपीरियल कालेज के प्रोफेसर मार्टिन पेरी ने 1 से 12 दिसम्बर के बीच आयोजित जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान इससे निपटने पर काफी कम प्रगति होने के मद्देनजर यह चेतावनी दी है।
इंटरनेशनल पैनल आन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के पूर्व सहअध्यक्ष पेरी ने दुनिया को जलवायु परिवर्तन के और भयानक प्रभावों के लिए तैयार रहने को कहा है।
आईपीसीसी की वर्ष 2007 की रिपोर्ट में कहा गया था कि 2015 में दुनिया में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन अपने चरम पर होगा। अपने खुद के अध्ययन के आधार पर पेरी का निष्कर्ष है कि यदि ग्लोबल वार्मिग से लड़ने में विलंब किया गया तो इससे पानी की आपूर्ति, खाद्यान्न उत्पादन,स्वास्थ्य, तटीय इलाकों और पर्यावरण पर खतरनाक परिणाम होगा।
पेरी के अध्ययन के अनुसार यदि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 2050 तक 1990 के स्तर से 80 प्रतिशत की कटौती के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल कर भी लिया गया तो भी जलवायु परिवर्तन से 40 लाख से 1.7 अरब लोग प्रभावित होंगे। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में सालान छह प्रतिशत की कटौती करनी होगी।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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