कड़ी मेहनत व जीत के जज्बे ने गहलोत को दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाया
विगत 8 दिसम्बर का दिन कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत के लिए दोहरी खुशी लेकर आया। उसी दिन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे सामने आए थे। कांग्रेस ने जहां दिल्ली में हैट्रिक लगाई वहीं राजस्थान में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंका। इन दोनों राज्यों में गहलोत महत्वपूर्ण भूमिका में थे। अपने गृह राज्य राजस्थान में उन्होंने पार्टी को जीत दिलाई और बतौर कांग्रेस महासचिव व दिल्ली के प्रभारी यहां भी पार्टी को जीत दिलाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राजस्थान में कांग्रेस को मिली जीत का सेहरा उनके सिर बंधा। लेकिन जब मुख्यमंत्री चुनने की बारी आई तो कई नेता इस दौड़ में शामिल हो गएं। केंद्रीय मंत्री शीशराम ओला ने जाट होने का खम ठोंकते हुए मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी जताई तो प्रदेश अध्यक्ष सी. पी. जोशी भी पीछे नहीं रहे। राष्ट्रीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष गिरिजा व्यास ने भी अपनी दावेदारी का इजहार किया लेकिन आखिरकार राजस्थान का ताज गहलोत को ही मिला। मिलता भी क्यों नही! पार्टी को चुनाव में जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका भी तो उन्होंने ही निभाई थी। वैसे भी वे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विश्वासपात्र सिपाहसालारों में जो शामिल हैं।
बतौर छात्र नेता अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले गहलोत विज्ञान और कानून में स्नातक हैं और अर्थशास्त्र में उन्होंने स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की है। पहली बार 1980 में वे जोधपुर संसदीय क्षेत्र से 7वीं लोकसभा के लिए चुने गए। इसके बाद वे 8वीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं लोकसभा के लिए भी चुने गए। वे तीन बार राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वर्ष 1999 से लेकर अभी तक वे राजस्थान विधानसभा में सरदारपुरा विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। उन्होंने 1974 से 1979 तक कांग्रेस की छात्र इकाई भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभाई।
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने अपने मंत्रिमंडल में उन्हें बतौर उपमंत्री शामिल किया और उन्हें पर्यटन मंत्रालय की जिम्मेदारी दी। बाद में उन्हें नागरिक उड्डयन मंत्रालय की भी जिम्मेदारी सौंप दी गई। राजीव गांधी जब देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भी गहलोत को अपने मंत्रिमंडल में कपड़ा राज्यमंत्री बनाया। वे 1989 में जून महीने से लेकर नवम्बर तक राजस्थान के गृह मंत्री भी रहे। 1991 से 1993 के बीच वे केंद्र में पी. वी. नरसिंहराव की सरकार में भी मंत्री रहे। 30 नवम्बर 1998 को उन्हें कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया और पहली बार 1 दिसम्बर 1998 को राजस्थान के मुख्यमंत्री बने।
वर्ष 2004 में उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) में महासचिव पद की जिम्मेदारी दी गई और उन्हें कांग्रेस कार्यसमिति में विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया गया।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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