वर्ग भेद और धर्म दे रहे हैं पाकिस्तान में जिहाद को हवा
समाचार पत्र डान ने 'आम दुश्मन' शीर्षक वाले अपने संपादकीय में लिखा है, "शक्तिहीन सोच का गुस्सा अमेरिकावाद के विरोध या धार्मिकता में बदल सकता है, लेकिन इसमें जो वास्तविक मुद्दा खदबदा रहा है, वह है वर्ग संघर्ष का।''
डॉन लिखता है, "अपने आर्थिक सशक्तीकरण के लिए आतंकवादी बनना या आतंकवादी संगठन का हिस्सा बनना गरीब युवाओं को आकर्षित करता है। लेकिन हथियार या हर महीने मिलने वाला पैसा उन्हें राहत नहीं देते, उन्हें राहत देती है उनकी ताजा पहचान। क्योंकि अभी तक उनकी अपनी कोई पहचान नहीं थी। अब उनके पास एक अपना समुदाय होता है, जहां उन्हें इज्जत मिलती है।"
समाचार पत्र द न्यूज ने अपने संपादकीय में लिखा है, "हमें इन ताकतों के असली चरित्र को जनता के बीच बेनकाब करने की जरूरत है। जनता को यह बताने की जरूरत है कि ये संगठन किस तरह से मासूमों को लालच देकर उन्हें उनके घर व परिवार से अलग कर देते हैं और उन्हें सिर्फ हत्यारा बना देते हैं। जनता को यह बताने की जरूरत है कि किस तरह से इन संगठनों ने अपने निजी हितों के लिए धर्म का सहारा ले रखा है।"
संपादकीय में आगे लिखा गया है, "जमात-उद-दावा जैसे संगठनों को तभी पूरी तरह रोका जा सकता है, जब उनकी जड़ें उखाड़ फेंकी जाएं। अन्यथा ऐसे संगठन खरपतवार की तरह लगातार बढ़ते जाएंगे।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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