जमात-उद-दावा को जड़ जमाने में संयुक्त राष्ट्र ने की थी मदद
संयुक्त राष्ट्र, 10 दिसम्बर (आईएएनएस)। पाकिस्तान स्थित जिस इस्लामी समूह जमात-उद-दावा को आतंकवादी संगठन घोषित करने के लिए भारत, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से मांग कर रहा है, मजेदार बात यह कि वर्ष 2005 के विनाशकारी भूकंप के बाद संयुक्त राष्ट्र ने ही इस संगठन को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में जड़ जमाने में मदद की थी।
भारत ने दावा किया है कि जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तैयबा का मातृ संगठन है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2002 में लश्कर-ए-तैयबा को आतंकवादी संगठन घोषित किया था।
लश्कर-ए-तैयबा को 26 नवंबर को हुए मुंबई हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। इस हमले में कम-से-कम 179 लोग मारे गए थे।
भारत ने जमात-उद-दावा को आतंकवादी संगठन घोषित करने के लिए मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से मांग की।
विदेश राज्य मंत्री ई. अहमद ने 15 सदस्यीय परिषद को बताया, "जमात-उद-दावा व इस तरह के अन्य संगठनों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहिष्कार करने तथा उनके खिलाफ सख्त प्रतिबंध लगाने की जरूरत है।"
लेकिन मजेदार बात यह कि वर्ष 2005 में पाकिस्तान में आए विनाशकारी भूकंप के बाद संयुक्त राष्ट्र ने ही जमात-उद-दावा को पाकिस्तानी कश्मीर में राहत कार्यों की जिम्मेदारी सौंपी थी।
भूकंप के एक वर्ष बाद बीबीसी ने जमात-उद-दावा के नेताओं की तरफ से लिखा था कि संयुक्त राष्ट्र की मदद से जो राहत कार्य उन्होंने किया था, वाकई में उसने उन्हें उस क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने तथा संगठन में बच्चों की भर्ती करने में मदद पहुंचाई थी।
वर्ष 2006 के अक्टूबर महीने की 5 तारीख को बीबीसी ने एक खोजी रिपोर्ट प्रकाशित की थी। उसमें कहा गया था, "जमात-उद-दावा, अल-राशिद ट्रस्ट व चरमपंथी इस्लाम की भूकंप के पहले इस क्षेत्र में कोई खास उपस्थिति नहीं थी। लेकिन उनके द्वारा किए गए राहत कार्यो ने और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से आई सहायता ने स्थानीय स्तर पर उनकी स्थिति को मजबूत बना दिया है।"
ज्ञात हो कि सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित अल-राशिद ट्रस्ट अलकायदा को वित्तीय मदद पहुंचाने का आरोपी है।
रिपोर्ट में कहा गया था, "जमात के एक नेता ने हमें बताया कि लोग अब उनके ऊपर भरोसा करने लगे हैं, बच्चों को उनके साथ छोड़ने में अब लोगों को कोई परेशानी नहीं है। ऐसे में उन्होंने सैकड़ों अनाथ बच्चों की संगठन में भर्ती कर ली है।"
पाकिस्तान के हाल के इतिहास में आए भूकंपों में वर्ष 2005 का भूकंप सबसे विनाशकारी था। भूकंप में तकरीबन 79,000 से भी अधिक लोग मारे गए थे और 20 लाख से अधिक बेघर हो गए थे। एक आंकड़े के मुताबिक 11,000 बच्चे अनाथ हो गए थे।
भूकंप के बाद राहत कार्य के लिए संयुक्त राष्ट्र की ओर से जमात-उद-दावा को लाखों डॉलर की राशि पहुंचाई गई थी।
बीबीसी की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि जमात-उद-दावा की मदद लेने का निर्णय पाकिस्तान द्वारा किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र में मानवीय मामलों का संयोजन करने वाले विभाग के तत्कालीन प्रमुख जान एजलैंड ने 10 अक्टूबर 2006 को पत्रकारों को बताया था, "यदि आप कश्मीर में काम करते हैं तो वहां सहायता पाने वाले लोग निश्चित रूप से कट्टरपंथी विचारधारा वाले संगठनों से जुड़े होंगे।"
यह पूछे जाने पर कि संयुक्त राष्ट्र ऐसे संगठनों को साथ लेकर राहत कार्य क्यों कर रहा था, जिसे संयुक्त राष्ट्र आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल कर चुका है, या जिन्हें आतंकवादी समूहों से संबध रखने के लिए जाना जाता है? एजलैंड ने कहा था, "निश्चित रूप से हमने कई सारे विभिन्न मतों व विभिन्न राजनीतिक विचारधारा वाले लोगों के साथ काम किया। दरअसल, भूखे लोगों से हम उनकी राजनीतिक विचारधारा नहीं पूछते।"
वहीं संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन प्रवक्ता स्टीफेन दुजारिक ने 6 अक्टूबर 2006 को एक पत्रकार वार्ता के दौरान कहा था कि इस वैश्विक संस्था की सर्वोच्च प्राथमिकता उस समय लोगों को मदद पहुंचानी थी। इसमें किसी ऐसी संस्था के सहयोग की जरूरत थी, जो मदद को लोगों तक पहुंचा सके।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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