एक पुलिस अधिकारी की पत्नी की व्यथा
नई दिल्ली, 7 दिसम्बर (आईएएनएस)। मुंबई हमलों के बाद हमारी सुरक्षा की पहली पंक्ति पुलिस की इस प्रकार के आतंकवादी खतरे का सामना करने की तैयारी के बारे में कुछ मूल प्रश्न खड़े हो गए हैं।
अशोक काम्टे भारतीय पुलिस सर्विस में 1989 के बैच में मेरे पति के साथ थे। मेरे पति के बैच के केवल वे ही ऐसे अधिकारी नहीं हैं जिनकी हत्या ड्यूटी के समय आतंकवादियों ने की है। नागालैंड कैडर के वेदप्रकाश और मणिपुर कैडर की वंदना मलिक की भी हत्या आतंकवादियों ने कर दी थी।
मेरे सामने इस समय कई अनसुलझे सवाल खड़े हो गए हैं। सबसे पहला तो यह है कि क्या वे अपराधियों के हाथों इसलिए मारे गए किजिनको देश की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वे अक्षम हैं? मुंबई पर हमला खुफिया नाकामी से नहीं, बल्कि खुफिया विभाग के पूरी तरह निकम्मा होने से हुआ।
जब भी कोई आतंकवादी हमला होता है और पुलिसकर्मियों की मौत होती है तो उनको शहीद का दर्जा दिया जाता है, और फिर जीवन पहले की तरह चलने लगता है।
नौकरशाही जनता के दुख से पूरी तरह उदासीन है। राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव ने व्यवस्था को पंगु बना दिया है। आतंकवादी हमलों के बढ़ने से जनता का गुस्सा फूट रहा है। इसके कारण देश की सुरक्षा एजेंसियों में आमूल चूल परिवर्तन की आवश्यकता है।
मुंबई हमलों में शहीद हुए महाराष्ट्र के एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे के अंतिम संस्कार के समय कुछ ऐसे राजनेता भी पहुंचे थे, जो मालेगांव विस्फोटों के संबंध में की जा रही जांच को लेकर उनकी निंदा कर रहे थे, उन पर बेसिर-पैर के आरोप लगा रहे थे।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार महाराष्ट्र के 180,000 पुलिसकर्मियों के लिए पिछले छह वर्षो में 2,221 हथियार खरीदे गए, इसमें 577 मुंबई के लिए शेष 1,644 पूरे महाराष्ट्र के लिए थे। फायरिंग रेंज और अन्य सुविधाओं के अभाव के कारण मुंबई के पुलिस वाले पिछले 10 वर्षो से गोलीबारी का अभ्यास भी नहीं कर पाए हैं।
क्या हम और मौतों का इंतजार कर रहे हैं। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की पत्नी के नाते मैं अपने पति और देशभर में कानून व्यवस्था बहाल करने में लगे पुलिस वालों के जीवन को लेकर चिंतित हूं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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