आतंकवादी हमलों की मीडिया कवरेज के नियमन पर जोर
मधुश्री चटर्जी
नई दिल्ली, 5 दिसंबर(आईएएनएस)। अधिकांश पत्रकारों के लिए मुंबई आंतकी हमलों की लगातार 60 घंटों तक रिपोर्टिग असाधारण चुनौती थी, लेकिन कई मीडिया विश्लेषक ऐसी घटनाओं की कवरेज को अनुशासित बनाने के लिए नियम कानून बनाए जाने की वकालत कर रहे हैं।
उनका मानना है कि मीडिया ने इस घटना की पल-पल लाइव तस्वीरें लोगों तक पहुंचाने की होड़ में जवाबदेही और नैतिकता का दामन छोड़ा। उनके मुताबिक मीडिया को हर कुछ दिखाने की होड़ में राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने का हक नहीं है। कई मीडिया विश्लेषकों और विशेषज्ञों का मानना है कि 26 नवंबर की रात से लेकर 29 नवंबर की सुबह तक मीडिया पूरी तरह अनियंत्रित हो गया था। इस होड़ ने उसे संवेदनाशून्य भी बनाया।
वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया विश्लेषक सेवांती निनान का कहना है कि मीडिया ने मुंबई आंतकी वारदात की बेरोकटोक रिपोर्टिग के दौरान कई बार गैर-जिम्मेदाराना हरकते दिखाई। ऐसी घटनाओं की रिपोटिर्ंग में खास सावधानी बरते जाने की जरूरत है।
कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता रंजीता बिस्वास कहती हैं, "जिस वक्त मैं स्वीडन में थी, वहां एक हमला हुआ। सभी चैनलों ने इसकी रिपोर्टिंग की, पर पूरी जवाबदेही के साथ। मुंबई कांड के मामले में मीडिया पूरी तरह हड़बड़ी में दिखा।" मुझे लगता है कि मीडिया कवरेज का नियमन जरूरी है।
नीदरलैंड के एक इंजीनियर चेतान्या कुंते ने 27 नवंबर को अपने एक ब्लॉग पर लिखा,"एनडीटीवी की संवाददाता बरखा दत्त एक व्यक्ति से पूछती हैं कि आपकी पत्नी ने कहां छिपे होने की पुष्टि की है तो यह भोलाभाला व्यक्ति यह बताने से परहेज नहीं करता कि उसकी पत्नी घटनास्थल पर कहां छिपी है। क्या इससे उसकी सुरक्षा खतरे में नहीं पड़ सकती थी?"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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