भोपाल गैस त्रासदी के दर्द तले दबी जिन्दगी
यूनियन कार्बाइड ऑफ इंडिया के भोपाल स्थित कारखाने से रिसी गैस ने लाखों लोगों की जिन्दगी में जहर घोल दिया है। दो-तीन दिसंबर 1984 की रात काल बनकर आई। जहरीली गैस अब तक 35 हजार से अधिक लोगों को अपना ग्रास बना चुकी है। एक लाख से अधिक लोग मौत के इंतजार में हैं तो तीन लाख से ज्यादा लोग बीमारियों की गिरफ्त में। यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास की बस्तियों ज़े पी़ नगर, छोला, अटल अयूब नगर, काजी कैम्प, बरखेड़ी, जहागीराबाद सहित अन्य इलाकों में रहने वाले हजारों परिवारों में गैस से हुई तबाही की कहानी आसानी से पढ़ी जा सकती है।
प्रभावित बस्तियों में रहने वालों को न तो शुद्ध पानी मिल पा रहा है और न ही स्वास्थ्य सुविधाएं। बरखेड़ी में रहने वाली जसोदा बाई बताती हैं कि गैस हादसे ने उनकी दुनिया ही उजाड़ दी है। पति रामलाल और बेटी पूनम उनका साथ छोड़ चुकी है। मकान था वह भी बिक गया है। सरकार की ओर से पेंशन के नाम पर डेढ़ सौ रुपये मिलते हैं जो जिन्दगी चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है।
गैस हादसे ने तो केसर बाई को ऐसे जख्म दिए हैं जिन्हें याद कर वे रो पड़ती हैं। वे बताती हैं कि गैस से मिली बीमारियों का इलाज कराते- कराते उनकी माली हालत काफी बिगड़ गई। आज स्थिति यह है कि वे फेरी लगाकर अपना जीवन चला रही हैं। अस्पतालों से उन्हें दवाई नहीं मिलती।
यद्यपि, त्रासदी के 24 साल बाद भी लोगों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है और हक पाने के लिए संघर्ष किए जा रहे हैं। उन्हें लगता है, "उस पार है उम्मीद, उजास से भरी एक समूची दुनिया, अंधेरा तो सिर्फ देहरी पर है।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
जीवनसंगी की तलाश है? भारत मैट्रिमोनी पर रजिस्टर करें - निःशुल्क रजिस्ट्रेशन!