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सामाजिक क्रांति के योद्धा, पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह नहीं रहे (लीड-1)

By Staff
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नई दिल्ली, 27 नवंबर (आईएएनएस)। पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का यहां अपोलो अस्पताल में गुरुवार दोपहर को निधन हो गया। वे लंबे समय से गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे। सिंह को मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कर देश की राजनीतिक दिशा बदलने वाले राजनेता के रूप में याद किया जाता है।

करीब एक दशक से रक्त कैंसर और किडनी की बीमारी से पीड़ित 77 वर्षीय सिंह दिसंबर 1989 से नवंबर 1990 तक देश के प्रधानमंत्री रहे।

सिंह का जन्म 25 जून 1931 को इलाहाबाद में हुआ था। साफ-सुथरी छवि के लिए पहचाने जाने वाले सिंह को समाज का एक बड़ा वर्ग सामाजिक न्याय का मसीहा मानता है। उन्होंने पिछड़े वर्र्गो के कल्याण के लिए मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कर देश में एक सामाजिक क्रांति की नींव रखी।

राज्यसभा सदस्य और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के नेता शाहिद सिद्दिकी ने कहा, "सिंह स्वतंत्र भारत के एक विचारवान नेता थे। वे न केवल एक राजनेता थे, बल्कि, सही अर्थो में 'स्टेट्समैन' थे जो सामाजिक व्यवस्था में आधारभूत पर्वितन चाहते थे।"

सिद्दिकी ने कहा, "उनका निधन देश और उन सभी लोगों के लिए बहुत बड़ा नुकसान है जो एक धर्मनिरपेक्ष और समानता पर आधारित भारत की वकालत करते हैं।"

भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, "भारतीय राजनीति में उनका एक महत्वपूर्ण स्थान है। गरीब और पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए उन्होंने जो कदम उठाए थे वे काफी महत्वपूर्ण थे।"

उन्होंने कहा, "वे सामाजिक इंजीनियरिंग के अग्रदूत थे।"

सिंह पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में वित्त और रक्षा मंत्री थे, लेकिन बोफोर्स तोप की खरीद में कथित धांधली के मुद्दे पर उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने जनमोर्चा का गठन कर केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और वाम दलों के सहयोग से सरकार बनाई। संभवत: यह पहला मौका था जब वाम दल और भाजपा एक साथ किसी सरकार को समर्थन दे रहे थे। वे दो दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990 तक प्रधानमंत्री रहे।

उन दिनों सिंह को 'मिस्टर क्लिनर' कहा जाता था। दरअसल, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सरकार में वे सबसे साफ-सुथरी छवि वाले मंत्री के रूप में जाने जाते थे।

अगस्त 1990 में सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फैसला किया। मंडल आयोग ने केंद्र सरकार की नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्गो के लिए 27 फीसदी आरक्षण का सुझाव दिया था।

सरकार के इस फैसले का कथित अगड़ी जातियों के छात्रों ने विरोध किया और कई जगहों पर हिंसा भी भड़की।

इसके बाद राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन को लेकर रथ यात्रा पर निकले भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद भाजपा ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। सिंह की सरकार गिर गई। सिंह ने आडवाणी पर देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का आरोप लगाया था।

एक साल से भी कम समय तक देश का नेतृत्व करने वाले सिंह के कार्यकाल को मुख्य रूप से मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए याद किया जाता है। सिंह के इस फैसले का देश की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ा। यह फैसला अभिजात्य और अगड़े तबकों के प्रभुत्व वाले भारतीय लोकतंत्र में आधारभूत परिवर्तन लाने का माध्यम बना।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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