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पुराना भारतीय कानून एड्स रोकने में सबसे बड़ी बाधा : यूएन एड्स निदेशक

By Staff
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कविता बाजेली दत्त

कविता बाजेली दत्त

नई दिल्ली , 17 नवंबर (आईएएनएस)। समलैंगिकता को अपराध ठहराने वाला देश का एक पुराना कानून एचआईवी/एड्स को फैलने से रोकने के प्रयासों में सबसे बड़ी बाधा है। संयुक्त राष्ट्र के एड्स (यूएनएड्स) के कार्यकारी निदेशक पीटर पीऑट का यही मानना है।

अपने हाल के भारत दौरे में पीटर ने आईएएनएस से कहा, "भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 ब्रिटिश शासन काल का कानून है और इसे काफी समय पहले ही समाप्त कर दिया जाना चाहिए था। यह मानवाधिकारों का हनन और एचआईवी/एड्स को रोकने की राह में सबसे बड़ी बाधा है।"

धारा 377 के अनुसार समलैंगिकता अप्राकृतिक और अपराधी कृत्य है। इस कानून पर काफी विवाद है और इसके खिलाफ वर्ष 2001 में दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई थी।

अनुमान के अनुसार भारत में 25 लाख एचवाई/एड्स पीड़ित हैं, इनमें 70,000 बच्चे हैं जिनकी उम्र 14 साल से कम है।

पीटर ने कहा कि समलैंगिकता के विरूद्ध यह कानून केवल भारत ही नहीं वरन पूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों और मुस्लिम देशों में भी लागू है।

पीटर ने धारा 377 को समाप्त करने के लिए स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास के प्रयासों की सराहना की। परंतु मंत्रिमंडल के अपने वरिष्ठ साथियों की आलोचना के बाद रामदास ने भी अपना स्वर बदल दिया और कहा कि धारा 377 को समाप्त करने के बजाय उसे सुधारा जाना चाहिए।

मामले के दिल्ली उच्च न्यायालय में आने के बाद से भारत सरकार भी इस कानून को समाप्त करने के मामले पर विभाजित है। जहां गृह मंत्रालय का मानना है कि इस कानून के हटने से समाज में अनावश्यक परेशानी पैदा होगी, वहीं स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि छुपी हुई समलैंगिकता से एचआईवी/एड्स के संक्रमण का खतरा बढ़ता है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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