विस चुनाव : जो बस्तर में जीतेगा, वही छत्तीसगढ़ में सिकंदर होगा
बस्तर, 11 नवंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ में बनने वाली अगली सरकार की चाबी राज्य के नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र बस्तर के पास है।
छत्तीसगढ़ के राजनीतिक गलियारों में इस सवाल पर चर्चा का बाजार गर्म है कि क्या सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बस्तर में 2003 का अपना इतिहास दोहराएगी या जीत का सेहरा कांग्रेस के सिर बंधेगा।
बस्तर में 12 सीटों के लिए प्रथम चरण में हो रहे मतदान को अब कुछ ही दिन बचे हैं और इन सीटों के लिए चुनावी प्रचार अपने चरम पर है। लेकिन कांग्रेस क्षेत्र में अपने परंपरागत मतों को लेकर चिंतित है।
नया राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ के लिए वर्ष 2003 में हुए प्रथम चुनाव में बस्तर जिले की 12 में से नौ सीटें जीतकर भाजपा सत्ता में पहुंची थी। लेकिन इस बार भाजपा और कांग्रेस में कांटे की लड़ाई बताई जा रही है। इसके साथ ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने दंतेवाड़ा व कोंटा सीट पर लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है। ये दोनों सीटें नक्सलियों का गढ़ मानी जाती हैं।
बस्तर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता के अनुसार बस्तर के आदिवासियों में अभी भी कांग्रेस के प्रति गहरा जुड़ाव है, गांधी परिवार के लिए उनके भीतर आदर है।
चार बार सांसद रहे बस्तर क्षेत्र के वरिष्ठ कांग्रेसी आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने आईएएनएस को बताया कि बस्तर में हारने की वजह से ही कांग्रेस वर्ष 2003 में सत्ता से दूर हो गई थी। नेताम ने कहा कि बस्तर हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रहा है। यदि पार्टी को सत्ता में लौटना है तो उसे इस क्षेत्र में अपना आधार फिर से खड़ा करना होगा।
लेकिन एक कांग्रेसी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बस्तर में कांग्रेस की स्थिति ठीक नहीं दिखाई दे रही। इसका प्रमुख कारण प्रत्याशियों का गलत चुनाव है। दूसरा कारण यह कि कांग्रेस के घोषणापत्र में इस मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं है कि बस्तर की प्रमुख समस्या नक्सलवाद से वह किस तरह निपटेगी।
जबकि पार्टी के एक अन्य सूत्र के अनुसार इस बार कांग्रेस का प्रदर्शन थोड़ा बेहतर होगा। पार्टी 5 से 6 सीटें जीतने की स्थिति में होगी।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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