नाकामी ने बढ़ाया द्रविड़ पर दबाव
नई दिल्ली, 10 नवंबर (आईएएनएस)। 'मिस्टर भरोसेमंद' और 'दीवार' जैसे विशेषणों के सुशोभित भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ आस्ट्रेलिया के साथ खेली गई चार मैचों की टेस्ट श्रंखला में बुरी तरह नाकाम रहे।
टेस्ट मैचों में 10 हजार से अधिक रन बनाने वाले द्रविड़ इस श्रंखला की सात पारियों में 17.14 के औसत से केवल 120 रन बना सके। उनका सर्वोच्च स्कोर 51 रन रहा।
जाहिर है, यह आंकड़ा द्रविड़ जैसे विश्वस्तरीय खिलाड़ी की प्रतिभा के साथ न्याय नहीं करता, इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि हालिया श्रंखला ने द्रविड़ को अपने करियर को लेकर जबरदस्त दबाव में ला दिया है।
आस्ट्रेलिया पर मिली शानदार जीत पर पूरी टीम जश्न मना रही है। टीम का सदस्य होने के नाते जाहिर तौर पर द्रविड़ भी इसमें शामिल हैं लेकिन उन्हें अपने खेल के स्तर में आई गिरावट की बात अंदर ही अंदर खाए जा रही होगी। खासतौर पर ऐसे में जबकि उनके साथ अंतर्राष्ट्रीय करियर शुरू करने वाले बाकी के खिलाड़ियों ने खुद साबित किया है।
सचिन तेंदुलकर, वी.वी.एस. लक्ष्मण और सौरव गांगुली ने तो इस श्रंखला में अपना डंका बजाया। रही बात अनिल कुंबले की तो उन्होंने सही समय पर संन्यास का फैसला लेकर खुद को नाकामी के बाद की आलोचना से बचा लिया।
गागुंली ने श्रंखला के पहले ही संन्यास की घोषणा कर दी थी और यही कारण है कि वे खुलकर खेले और 324 रन बटोरने में सफल रहे। इस लिहाज से द्रविड़ जबरदस्त दबाव में हैं।
द्रविड़ के मन में दो तरह के ख्याल आ रहे होंगे। एक तो संन्यास लेकर तमाम आलोचना से पीछा छुड़ा लो और दूसरा लय पाकर अपना सम्मान फिर से हासिल करो। द्रविड़ संन्यास लेने के मूड में बिल्कुल नहीं हैं क्योंकि भारतीय टीम के पांच दिग्गजों में वे सबसे कम उम्र के हैं।
जहां तक लय पाने की बात है तो इसके लिए द्रविड़ को कुछ वैसा ही करना होगा, जैसा गांगुली कई बार कर चुके हैं। 2007 में गांगुली ने घरेलू मैचों में खेलकर खुद को मांजा और फिर शतक लगाकर टीम में वापसी करने में सफल रहे थे।
द्रविड़ को इसी राह पर चलना होगा और फिर इस पर चलने में कोई बुराई नहीं। युवराज सिंह इन दिनों इसी राह पर चल रहे हैं। बहुत दिन नहीं बीते हैं, गांगुली ने अपने करियर में तीसरी बार ऐसा करते हुए आस्ट्रेलिया के साथ खेली गई टेस्ट श्रंखला ेके लिए टीम में जगह पाई थी।
पाकिस्तानी टीम के दिवंगत कोच बॉब वूल्मर ने एक बार अपनी टीम को बहुत सार्थक नारा दिया था। उन्होंने 'बैक टू बेसिक्स' (मूल की तरफ लौटो) का नारा लगाया था।
खिलाड़ी चाहें कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए, उसका मूल या फिर उसकी जड़ें घरेलू क्रिकेट से जुड़ी होती हैं। जब कभी लय बिगड़ती है तो वह घरेलू क्रिकेट में लौटकर उसे फिर से प्राप्त कर सकता है। ऐसे में द्रविड़ का 'बेसिक्स' की तरफ लौटना ज्यादा माकूल होगा।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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