पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहा है कांग्रेस का एक सच्चा सिपाही !
नई दिल्ली, 9 नवंबर (आईएएनएस)। यूं तो राजनीतिक दलों के मुख्यालयों पर लोगों की कमी नहीं रहती। किसी को चुनाव का टिकट चाहिए होता है, किसी को पार्टी में कोई ओहदा तो कोई नेताजी से अपना कुछ काम निकलवाना चाहता है। देश की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के राजधानी स्थित कांग्रेस मुख्यालय 24, अकबर रोड पर भी कमोबेश ऐसा ही माहौल रहता है, परंतु यहां एक शख्स ऐसा भी है जो इन सारे प्रपंचों से दूर, हर रोज निस्वार्थ भाव से यहां आता है।
नई दिल्ली, 9 नवंबर (आईएएनएस)। यूं तो राजनीतिक दलों के मुख्यालयों पर लोगों की कमी नहीं रहती। किसी को चुनाव का टिकट चाहिए होता है, किसी को पार्टी में कोई ओहदा तो कोई नेताजी से अपना कुछ काम निकलवाना चाहता है। देश की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के राजधानी स्थित कांग्रेस मुख्यालय 24, अकबर रोड पर भी कमोबेश ऐसा ही माहौल रहता है, परंतु यहां एक शख्स ऐसा भी है जो इन सारे प्रपंचों से दूर, हर रोज निस्वार्थ भाव से यहां आता है।
जयंती केसरी नामक इस शख्स को न तो लोकसभा-विधानसभा का टिकट चाहिए, न ही कोई पद और न ही किसी और तरह की मदद। उसकी एक ही तमन्ना है कि कांग्रेस दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करे। लगभग 45 वर्षीय केसरी पिछले 20 वर्षो से पार्टी के फलने-फूलने की दुआ करते हुए कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी के झंडे और नेताओं की तस्वीरें बेचते हैं।
उनके पिता दुर्गाप्रसाद केसरी ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जमाने से यह काम शुरू किया था। पार्टी का झंडा बेचने के कारण उनका नाम ही पड़ गया था 'झंडा केसरी'। पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी तक उन्हें प्यार से झंडा केसरी के नाम से ही बुलाते थे।
केसरी परिवार झारखंड के झरिया का रहने वाला है। जयंती के पिता 'झंडा केसरी' आजादी के बाद से ही दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय के परिसर में पार्टी का झंडा और नेताओं की तस्वीरें बेचा करते थे। उन दिनों कांग्रेस पार्टी का मुख्यालय 7, जंतर मंतर रोड पर होता था, जहां अब जनता दल युनाइटेड का मुख्यालय है।
इस पेशे से लगाव या जुड़ाव की बात पूछने पर जयंती कहते हैं, "पिताजी ने यह काम शुरू किया था। उनके जाने के बाद मैंने उनका काम संभाल लिया।"
उनसे जब पूछा गया कि इतनी महंगाई में आप झंडे और तस्वीरें बेचकर अपनी जीविका कैसे चला लेते हैं। इस पर जयंती ने कहा, "यह तो अपना काम है। पेट तो ऊपर वाला पालता है। देश भर के बड़े-बड़े नेता यहां आते हैं। हमारा तो मथुरा-काशी और मक्का-मदीना भी यही है। कभी कोई मुख्यमंत्री तो कभी कोई मंत्री और सांसद-विधायक , हर कोई यहां आता है। जो भी आता है, नजर पड़ने पर कुछ देकर ही जाता है। कभी पांच सौ तो कभी हजार मिल जाते हैं। इसी से अपनी रोजी रोटी चलती है।"
वे कहते हैं, "इतने दिनों से मैं यह काम कर रहा हूं लेकिन मैं कभी निराश नहीं हुआ। मुझे संतोष है कि मैं पार्टी की सेवा कर रहा हूं।"
आजकल के नेताओं के बारे में अपनी राय जाहिर करते हुए उन्होंने कहा, "पूछिए मत भैया। कुछ पाने या बनने के लिए जब तक यहां के चक्कर लगाते हैं तब तक तो खूब पूछते हैं लेकिन कुछ बन जाने के बाद तो वे मुंह फेर लेते हैं।"
जयंती केसरी के बारे में जब पार्टी के एक पदाधिकारी से पूछा गया तो उन्होंने उनका परिचय कुछ इस प्रकार दिया। "जयंतीजी झंडा केसरीजी के बेटे हैं। झंडा केसरी ने निस्वार्थ भाव से पार्टी की सेवा की और प्रचार किया। आज उनकी विरासत को जयंतीजी आगे बढ़ा रहे हैं वह भी पूरे निस्वार्थ भाव से। सही मायने में वे ही कांग्रेस के सच्चे सिपाही हैं।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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