वाराणसी में संपन्न हुई नाग नथैया लीला
वाराणसी, 2 नवंबर (आईएएनएस)। वाराणसी के तुलसी घाट पर रविवार को प्रसिद्ध नाग नथैया लीला सोल्लास संपन्न हो गई। गंगा में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए यह लीला आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गई है। वाराणसी में गंगा किनारे बने तुलसी घाट पर पिछले 424 वषों से हो रही इस लीला की शुरुआत गोस्वामी तुलसीदास ने की थी।
लीला के बारे में कौशल मिश्रा ने बताया कि इस लीला के दौरान श्री कृष्ण के कदम्ब के पेड़ से यमुना में कूदने और कालिया नाग के नथने का मंचन किया जाता है। इस लीला के लिए कदम्ब का पेड़ प्रसिद्ध संकट मोचन मन्दिर से आता है। लीला से जुड़े लोग इस कदम्ब के पेड़ को लीला के दिन ही काटते हैं और कन्धे पर लेकर घाट तक पंहुचाते हैं। इस लीला में भाग लेने के लिए पात्र भी तुलसी घाट के ही होते हैं।
कदम्ब के पेड़ को बांस के सहारे गंगा नदी में खड़ा कर दिया जाता है। इसके पास ही सात फनों वाला कालिया नाग को भी लगभग पच्चीस फुट पानी में बांसों के सहारे खड़ा कर दिया जाता है। नाग के पूंछ वाले हिस्से की ओर कमल के फूल लगाए जाते हैं। लीला के अन्तर्गत श्री कृष्ण ग्वाल बालों के साथ खेलते हुए यमुना नदी में गई गेंद को निकालने के लिए पानी में कूदते हैं।
इस दौरान श्री कृष्ण का सामना यमुना में रहने वाले कालिया नाग से होता है। श्री कृष्ण कालिया नाग को नथ कर उसके फन पर बांसुरी बजाते हुए निकलते हैं। इस प्रकार यमुना नदी को कलिया नाग के अभिशाप से मुक्ति मिलती है और उसका पानी भी शुद्ध हो जाता है। इसी लीला को यहां गंगा में मंचित किया जाता है।
संकट मोचन मन्दिर के महंत प्रोफेसर वीरभद्र मिश्र के अनुसार इस लीला को वाराणसी में शुरू करने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण था। दरअसल आज गंगा में सैकड़ों की संख्या में नाले गिर रहे हैं। ये नाले गंगा को कालिया नाग से भी अधिक विषैला बना रहे हैं। प्रोफेसर मिश्र के मुताबिक नाग नथैया की यह लीला आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो चली है।
नागनथैया की इस लीला को देखने के लिए बड़ी संख्या में काशीवासी जुटते हैं। काशी का राज परिवार भी इस लीला को देखने के लिए पंहुचता है। यही नहीं विदेशी पर्यटक भी इस लीला को देखने के लिए भारी संख्या में एकत्र होते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।