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छठ व्रतियों के लिए अटूट आस्था का केंद्र है देव का सूर्य मंदिर

By Staff
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पटना, 2 नवम्बर (आईएएनएस)। बिहार के औरंगाबाद जिले में देव स्थित त्रेतायुगीन पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर अपनी कलात्मक भव्यता के लिए तो प्रख्यात है ही, यह छठ व्रतियों के लिए भी अटूट आस्था का केंद्र है।

देव स्थित भगवान भास्कर का यह मंदिर अपने शिल्प के कारण सदियों से आकर्षण का केंद्र रहा है। काले और भूरे पत्थरों से निर्मित यह मंदिर उड़ीसा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से काफी कुछ मेल खाता है। मंदिर की बाहरी दीवार पर खुदे श्लोक के अनुसार 12 लाख 96 हजार वर्ष लंबे त्रेता युग के बीत जाने के बाद इलापुत्र पुरूलवा ऐल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

मंदिर के पुजारी त्रिभुवन पंडित के अनुसार वर्ष 2007 में यह पौराणिक मंदिर 1 लाख 50 हजार वर्ष का हो गया। पंडित के अनुसार चैत्र व कार्तिक महीने में यहां लाखों छठ व्रतियों की भीड़ जमा होती है। पंडित के अनुसार यह देश का अकेला ऐसा सूर्य मंदिर है, जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है।

इस मंदिर में सात रथों पर सूर्य की प्रस्तर मूर्तियां उदयाचल(प्रात:कालीन सूर्य), मध्याचल(मध्यान्ह कालीन सूर्य) और अस्ताचल (अस्तगामी सूर्य) तीनों अवस्थाओं में विद्यमान हैं। लगभग सौ फुट ऊंचाई वाला यह सूर्य मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भुत नमूना है।

देव निवासी 70 वर्षीय नवल किशोर दुबे ने आईएएनएस को बताया कि मंदिर के निर्माण को लेकर कई जनश्रुतियां प्रचलित हैं। सर्वाधिक प्रचलित जनश्रुति के अनुसार ऐल नामक एक राजा किसी ऋषि के शाप से श्वेत कुष्ठ से पीड़ित हो गए थे। एक बार आखेट के दौरान वह देव के वनप्रांत में भटक गए। भूखे-प्यासे राजा को वहां एक सरोवर दिखाई दिया। राजा ने उस सरोवर में स्नान किया और उसका पानी पीया। बाद में उनका रोग दूर हो गया। फिर राजा ने वहां सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया। दुबे के मुताबिक मंदिर के निकट आज भी वह सरोवर मौजूद है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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