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कितना कारगर होगा तीन देशों का गैस उत्पादक संघ ?

By Staff
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मास्को, 27 अक्टूबर (आईएएनएस)। दुनिया के 60 प्रतिशत प्राकृतिक गैस भंडार पर अधिकार रखने वाले रूस, ईरान व कतर जैसे तीन देशों ने पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन(ओपेक) की तर्ज पर एक गैस उत्पादक संघ बनाने पर सहमति जताई है।

मास्को, 27 अक्टूबर (आईएएनएस)। दुनिया के 60 प्रतिशत प्राकृतिक गैस भंडार पर अधिकार रखने वाले रूस, ईरान व कतर जैसे तीन देशों ने पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन(ओपेक) की तर्ज पर एक गैस उत्पादक संघ बनाने पर सहमति जताई है।

समाचार एजेंसी आरआईए नोवोस्ती के अनुसार ये तीनों गैस निर्यातक देश गैस की कीमतें बढ़ाना चाहते हैं।

लेकिन बदकिस्मती यह है कि कीमतों में परिवर्तन का अधिकार उनके पास नहीं है। गैस की कीमतें तेल व पेट्रोरसायन बाजार के अधीन ही नियंत्रित होती हैं। यानी गैस का अपना कोई स्वतंत्र बाजार ही नहीं है।

नई संस्था बनाने के पीछे इन देशों का यही मकसद है कि कीमतों पर नियंत्रण का अधिकार इन देशों के पास आ जाए।

बहरहाल, ईरान की राजधानी में 21 अक्टूबर को बना यह नया गैस गठबंधन वास्तव में एक बड़ा गैस त्रिगुट माना जा रहा है।

ओपेक की तर्ज पर बनने वाले इस गैस उत्पादक संघ को इसके घोषणा पत्र पर स्वीकृति बन जाने के बाद 18 नवंबर को अंतिम रूप दे दिया जाएगा। ईरान द्वारा इस संगठन के विचार को सामने लाए जाने के बाद, पिछले दो वर्षो से इस घोषणा पत्र पर काम किया जा रहा है।

हालांकि गैस उत्पादक देशों के पास वर्ष 2001 से गैस एक्सपोर्टिग कंट्रीज फोरम(जीईसीएफ) नामक 16 सदस्यीय देशों का एक बातचीत का मंच तो है, लेकिन इस मंच के पास अपना कोई घोषणा पत्र नहीं है। इसके निर्णय मानने के लिए भी कोई सदस्य बाध्य नहीं होता। बातचीत के एक मंच से ज्यादा इसका कोई महत्व नहीं है।

लेकिन किसी एक घोषणा पत्र पर भी सहमति बना पाना इस नए गैस ओपेके लिए किसी लंबी लड़ाई से कम नहीं है।

एक तरफ ईरान गैस उत्पादन का कोटा सुनिश्चित कर इस गैस उत्पादक संघ को मूल आपेक के समकक्ष खड़ा करना चाहता है, ताकि कीमतें बढ़ाकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को और चौपट किया जा सके।

जबकि मास्को आक्रामक नीतियों से बचने की कोशिश कर रहा है। उसका सुझाव है कि नए संगठन को संयुक्त गैस परियोजनाओं व गैस ढुलाई के प्रबंधन के मामलों पर विचार करना चाहिए।

रूस के लिए यह मुद्दा काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि मध्य एशियाई गैस रूस के रास्ते से होकर ही यूरोप को जाती है। यह कैस्पियन या ईरान से होकर नहीं जाती।

इन भूराजनैतिक मुद्दों के अलावा इस प्रस्तावित उत्पादक संघ के रास्ते में रोड़े के रूप में और भी व्यवहारिक मुद्दे हैं।

बहरहाल, देखना अब यह है कि यह नया गैस ओपेक व्यवहारिक रूप से कितना कारगर साबित हो पाता है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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