निचली अदालतों के भ्रष्ट न्यायाधीश पद छोड़ें : प्रधान न्यायाधीश
नई दिल्ली, 15 अक्टूबर (आईएएनएस)। प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन ने कहा है कि निचली अदालतों के भ्रष्ट न्यायाधीशों को स्वेच्छा से पद छोड़ देना चाहिए। ऐसे में उन्हें संदेह पूर्व व्यवहार के कारण पद छोड़ने वाले सरकारी कर्मचारियों की तरह पेंशन का लाभ मिलना चाहिए।
उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को मंगलवार को भेजे पत्र में बालाकृष्णन ने सुझाव दिया है कि उच्च न्यायालयों को लोक सेवाओं के लिए लागू मौलिक कानून (फंडामेंटल रूल) 56(जे) का अनुशरण करना चाहिए।
इस कानून के तहत यदि किसी सरकारी अधिकारी की विश्वसनीयता पर शक जाहिर किया जाता है, लेकिन उसके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं होता है तो ऐसी स्थिति में अधिकारी समय से पहले सेवानिवृत्त होता है तो ग्रेच्युटी, भविष्य निधि और पेंशन का पूरा लाभ मिलता है।
इस कानून में यह भी व्यवस्था है कि यदि कोई सरकारी अधिकारी अपराध या भ्रष्टाचार का औपचारिक मामला दर्ज होने के बाद अवकास प्राप्त करता है तो वह पूरा ग्रेच्युटी और मासिक पेंशन का एक बड़ा हिस्सा पाने का हकदार नहीं रह जाता।
प्रधान न्यायाधीश ने पत्र में लिखा है, "यह कानून संबंद्ध प्रशासन को यह अधिकार देता है कि वह जन हित में किसी अधिकारी को सेवा मुक्त कर सकता है।"
उन्होंने लिखा है कि इस प्रावधान के पीछे मुख्य उद्देश्य उन कर्मचारियों को सेवामुक्त करना है जो अनुपयुक्त, अप्रभावी या जिसकी सेवा संदेह पैदा करती है। जैसा कि आप जानते हैं कि समय से पूर्व सेवामुक्त होना कोई अपमान की बात नहीं है।
इस कानून के तहत सरकारी अधिकारियों की कार्यक्षमता और ईमानदारी का मूल्यांकन 50 और 55 वर्ष की उम्र में किया जाता है।
उन्होंने सुझाव दिया है कि उच्च न्यायालयों को भी निचली अदालतों के न्यायाधीशों की ईमानदारी और कार्यक्षमता का 50, 55 और 58 वर्ष की उम्र में मूल्यांकन करना चाहिए।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।