ईशु के प्रति समर्पित सिस्‍टर अल्‍फोंसा
पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने रविवार को यहां सेंट पीटर्स स्क्वोयर में आयोजित एक भव्य आयोजन में उन्हें संत की उपाधि प्रदान की। उन्हें यह उपाधि भारतीय समयानुसार दोपहर दो बजे प्रदान की गई।
भारतीय गिरजाघरों के 2,000 वर्षो से अधिक के इतिहास में वह पहली महिला हैं जिन्हें संत की उपाधि दी गई। सिस्टर अल्फोंसा के व्यक्तित्व की बात करें तो वो बचपन से ही प्रभु ईशु को अपना जीवन समर्पित कर चुकी हैं। सिस्टर अल्फोंसा ने मात्र सात वर्ष की उम्र में ही प्रभु यीशू को अपना 'दिव्य जीवनसाथी' करार देकर अपना जीवन उन्हें समर्पित कर दिया था।
वेटिकन द्वारा उन्हें संत घोषित किए जाने से पहले तैयार की गई उनकी जीवनी के अनुसार उनके परिवार ने 13 वर्ष की उम्र में उनका विवाह करने का निश्चय किया था। अल्फोंसा ने इसका प्रतिरोध किया उन्होंने अत्यधिक प्रार्थनाएं करनी शुरू कर दीं यहां तक कि उन्होंने इससे बचने के लिए अपने आप को कुरूप कर लेने का विचार भी बनाया।
सिस्टर अल्फोंसा का जन्म 19 अगस्त सन 1910 को भारत के केरल में कोट्टायम के निकट एक गांव कुडामालूर में हुआ था। आठ दिन बाद 28 अगस्त को उनका बपतिस्मा किया गया और उन्हें अन्नाकुट्टी का नाम दिया गया। तीन महीने बाद ही उनकी मौत हो गई। सन 1917 में मात्र सात वर्ष की उम्र में वे अपने दोस्तों से कहती थीं, "तुम जानते हो आज मैं इतनी खुश क्यों हूं, क्योंकि यीशू मेरे हृदय में है।"
अल्फोंसा उस समय अपनी एक रिश्तेदार के साथ रहती थीं जो बराबर उन्हें तंग करती थी। मात्र 13 वर्ष की उम्र में उनका विवाह तय किया गया। अल्फोंजा ने उससे बचने के लिए रात भर प्रार्थनाएं कीं और उसके बाद उनके मन में विचार आया कि अगर वे कुरूप हो गईं तो कोई उनसे विवाह करना नहीं चाहेगा। उन्होंने जलते कोयलों से अपना पैर जलाने तक पर विचार किया।
अन्ना
को
सन
1928
में
सिस्टर
अल्फोंसा
का
नाम
दिया
गया।
सन
1930-1935
के
दौरान
अल्फोंसा
को
गंभीर
बीमारियों
से
जूझना
पड़ा।
हमेशा
शांत
रहने
वाली
और
मृदुभाषी
सिस्टर
अल्फांसो
का
28
जुलाई
1946
को
भारानंगनम
में
निधन
हो
गया।