गंगा में मूर्ति विसर्जन का तलाशा जा रहा है विकल्प
वाराणसी, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। गंगा में मूर्ति विसर्जन के चलते होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए वाराणसी में अब एक ऐसा विकल्प तैयार किया जा रहा है जिससे धार्मिक भावनाएं भी आहत नहीं होंगी और प्रदूषण भी नहीं बढ़ेगा।
एक अनुमान के अनुसार इलाहाबाद से लेकर गंगा सागर के बीच के शहरों से प्रति वर्ष 70 हजार से ज्यादा मूर्तियां गंगा में बहा दी जाती हैं। जिससे न सिर्फ गंगा की धारा विचलित हो रही है बल्कि उसमें गाद भी जमती जा रही है। यही वजह है कि गंगा सफाई के लिए पूरे गंगेज बेल्ट में काम करने वाली एक राष्ट्रीय स्वयं सेवी संस्था गंगा महासभा ने अब गंगा में मूर्ति विसर्जन का एक ऐसा विकल्प तलाश लिया है जिसमें मूर्ति विसर्जन भी होता रहेगा और गंगा में प्रदूषण भी नहीं फैलेगा।
मूर्ति विसर्जन के विकल्प का प्रयोग कोई नई बात नहीं है। इसका सफल प्रयोग कोलकाता में चन्दन नगर के युवाओं द्वारा पिछले सात सालों से किया जा रहा है। चन्दन नगर के युवा मूर्ति विसर्जन के कारण गंगा में होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए मुख्य घाट (जहां पर सबसे ज्यादा मूर्तियों का विसर्जन होता था) पर एक लोहे की जाली लगाकर बहायी गयी मूर्ति से प्रदूषण फैलाने वाले पदाथोर्ं को बाहर निकाल लेते हैं और फिर उसे मिट्टी में दबा दिया जाता है। इससे मूर्ति विसर्जन का मकसद भी पूरा हो जाता है और गंगा प्रदूषण से भी बच जाती है।
चन्दन नगर की तर्ज पर गंगा महासभा अब वाराणसी में भी यही प्रयोग आजमाने की तैयारी कर रही है। गंगा महासभा के महासचिव स्वामी जितेन्द्रानन्द ने बताया कि टिहरी बांध के बन जाने की वजह से गंगा में प्रवाह कम हो गया है इसलिए अब गंगा इस तरह के प्रदूषण बर्दाश्त नहीं कर पा रही है।
जितेन्द्रानन्द ने बताया कि केवल दुर्गा मूर्तियों का ही मामला नहीं है बल्कि सरस्वती पूजा, गणेश पूजा, विश्वकर्मा पूजा सहित दर्जनों ऐसे त्योहार हैं जिसमें हजारों मूर्तियों को गंगा में प्रति वर्ष बहाया जाता है। इसलिए गंगा महासभा अब वाराणसी के दशाश्वमेघ घाट पर एक लोहे की जाली लगाने की तैयारी कर रहा है ताकि मूर्तियों से फैलने वाले प्रदूषण को रोका जा सके।
गंगा सफाई के प्रति जनजागरण करने वाली संस्था गंगा सेवा निधि के अध्यक्ष सत्येन्द्र मिश्र का कहना है कि पौराणिक मान्यता के तहत ही मूर्तियों को गंगा में प्रवाहित किया जाता है। लेकिन शास्त्रों के प्रख्यात पं जानकी प्रसाद द्विवेदी का मानना है कि शास्त्रों में यह कहीं नहीं लिखा है कि पूजा के बाद मूर्तियों को गंगा में फेंक दिया जाए।
गंगा आस्था की प्रतीक तो है ही लेकिन वाराणसी में गंगा और गंगाघाट पर्यटकों के भी आकर्षण के केंद्र हैं। यहां हजारों पर्यटक घूमने के लिए आते है। गंगा को मां कहा जाता है और उसमें जब इस तरह प्रदूषण फैलाने वाली सामग्रियां फेंकी जाती हैं तो यहां आने वाले पर्यटक भी काफी हैरान होते हैं। मेक्सिको से गंगा की पवित्रता को सुनकर वाराणसी घूमने आया मारियो तो आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहता है कि जिसे लोग मां कहते हैं उसी में लोग प्रदूषण फैलाने वाले पदार्थ क्यों फेकते हैं यह मेरी समझ में नहीं आ रहा है।
कहते हैं कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है तभी तो पूरे गंगेज बेल्ट में हजारों मूर्तियों के विसर्जन के बाद गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण से निपटने के लिए गंगा सफाई अभियान से जुड़ी संस्थाएं अब उसका सर्वमान्य विकल्प तलाशने लगी हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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