मध्यप्रदेश में सरकारी प्रवक्ताओं ने फूंका बगावत का बिगुल
भोपाल, 11 अक्टूबर (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर प्रदेश सरकार जहां हर वर्ग को खुश करने में लगी है, वहीं सूबे के जनसंपर्क विभाग अर्थात सरकारी प्रवक्ताओं में नाराजगी है। उन्होंने नए सेटअप तथा कुछ अन्य मांगों को लेकर बगावत का बिगुल फूंक दिया है।
कर्मचारियों के नियम मुताबिक काम (वर्क टु रूल) के तहत अपनी सेवाएं देने से सरकार की नीतियों तथा योजनाओं के प्रचार-प्रसार के अभियान की गति धीमी पड़ गई है।
सरकार की योजनाओं और नीतियों का प्रचार करने के साथ सरकार की छवि बनाने में जनसंपर्क विभाग की अहम भूमिका रहती है। यह अमला हर सरकार के लिए विज्ञापन एजेंसी की तरह काम करता है। प्रदेश के गठन के बाद 1972 में विभाग का सेटअप बना था। उसके बाद आज तक सिर्फ कुछ पद ही स्वीकृत किए गए हैं और विभाग का ढांचा भी जस का तस बना हुआ है।
जनसंपर्क विभाग के उप संचालक ध्रुव शुक्ल ने बताया कि पिछले 32 सालों से नए पदों का सृजन नहीं हुआ है। इसका असर कर्मचारियों की पदोन्नति पर पड़ रहा है। पिछले ढाई साल से जनसंपर्क विभाग के तमाम संगठन नया सेटअप बनाने की मांग करते आ रहे हैं। इसके लिए उन्हें सिर्फ यही आश्वासन मिला कि कैबिनेट में प्रस्ताव पेश किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि यह आश्वासन अभी हाल ही में आगे बढ़ा और कैबिनेट ने प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए वित्त विभाग को भेजा। वित्त विभाग ने कुछ पहलुओं पर आपत्ति जताई लेकिन जनसंपर्क विभाग की ओर से उन आपत्तियों का कोई निदान नहीं किया गया।
शुक्ला बताते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने न केवल विभाग के कार्यों की प्रशंसा की है बल्कि उनकी मांगों को भी जायज ठहराया है। कर्मचारियों में सबसे ज्यादा नाराजगी जनसंपर्क आयुक्त मनोज श्रीवास्तव के रवैये को लेकर है। उनका आरोप है कि मुख्यमंत्री तथा जनसंपर्क मंत्री उनकी मांगों से सहमत हैं मगर जनसंपर्क आयुक्त सार्थक पहल नहीं कर रहे है। सभी कर्मचारियों और अधिकारियों ने मिलकर समन्वय समिति बना ली है और अवकाश के दिन कोई काम नहीं करने तथा सिर्फ कार्यालयीन समय में ही अपनी सेवाएं देने की घोषणा की है।
जनसंपर्क अधिकारी संघ के रवि उपाध्याय ने बताया है कि उनका विभाग मीडिया और सरकार के बीच पुल का काम करता है। पिछले तीन दशकों में मीडिया का काफी विस्तार हुआ है और उनके विभाग की जिम्मेदारियां भी बढ़ गई हैं। मध्यप्रदेश के कई जिलों में अधिकारी नहीं बल्कि कर्मचारी जिले के मुखिया के तौर पर काम कर रहे हैं। विभाग का बजट बढ़ा है और जिम्मेदारियां भी। दूसरी ओर अमले में वृद्घि नहीं की जा रही है। उनके विभाग के पास पर्याप्त बजट है और स्थिति यह है कि डेढ़ करोड़ रुपए कालातीत (लैप्स) हो जाते हैं।
इन सरकारी प्रवक्ताओं के नियम मुताबिक काम शुरू कर देने से पिछले दो दिनों से सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार की गतिविधि ही थम सी गई है। दूसरी ओर जिला स्तर पर होने वाले मंत्रियों तथा अधिकारियों के दौरों के समाचार भी स्थान हासिल नहीं कर पा रहे हैं। जनसंपर्क आयुक्त मनोज श्रीवास्तव से आईएएनएस ने विभागीय कर्मचारियों के इस फैसले के संदर्भ में जानना चाहा तो उन्होंने कुछ भी कहने से साफ इंकार कर दिया।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।