मुखर्जी और राइस के दस्तखत के साथ 123 करार संपन्न (लीड-2)
वाशिंगटन, 11 अक्टूबर (आईएएनएस)। विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी और अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस के द्विपक्षीय 123 करार पर हस्ताक्षरों के साथ ही ऐतिहासिक भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता संपन्न हो गया। इसके साथ ही परमाणु क्षेत्र में भारत का पिछले तीन दशक से जारी अलगाव भी समाप्त हो गया।
वाशिंगटन, 11 अक्टूबर (आईएएनएस)। विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी और अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस के द्विपक्षीय 123 करार पर हस्ताक्षरों के साथ ही ऐतिहासिक भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता संपन्न हो गया। इसके साथ ही परमाणु क्षेत्र में भारत का पिछले तीन दशक से जारी अलगाव भी समाप्त हो गया।
मुखर्जी और राइस ने अमेरिकी वित्त विभाग के बेंजमिन फ्रेंकलिन कक्ष में शुक्रवार देर रात 1.46 बजे हस्ताक्षर किए।
हस्ताक्षर से पहले इस अवसर को ऐतिहासिक बताते हुए राइस ने इस समझौते को अभूतपूर्व करार दिया। उन्होंने इसे भारत-अमेरिकी संबंधों में एक महत्वपूर्ण दिन बताया।
अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच 18 जुलाई 2005 को बनी सहमति के बाद इस करार को अमली जामा पहनाने में 1980 दिन लग गए। इस दौरान आए अनेक उतार-चढ़ावों को याद करते हुए राइस ने कहा," बहुत से लोगों ने सोचा था कि यह दिन कभी नहीं आएगा। लेकिन अविश्वास के बादल अब छंट गए हैं।"
उन्होंने कहा कि इस करार का संपन्न होना भारत और अमेरिका के बीच सहभागिता की क्षमता को दर्शाता है। अविश्वास की वजह से इस क्षमता की कई दशकों तक अनदेखी होती रही और अब इसका पूरा एहसास हो चुका है।
करार पर दस्तखत के लिए नई दिल्ली से वाशिंगटन पहुंचे मुखर्जी ने इसे दोनों देशों के परिवर्तित संबंधों और भागीदारी का स्पष्ट संकेत बताया। उन्होंने कहा कि दोनों देश उस विचार और सहमति को क्रियान्वित करने की कोशिश करेंगे, जो उनके नेताओं के बीच जुलाई 2005 से मार्च 2006 तक बनी।
मुखर्जी ने कहा, "इस समझौते का महत्व यह है कि यह भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु सहयोग और व्यापार के क्षेत्र में पहला कदम है।" उन्होंने कहा कि यह अधिकारों और दायित्वों का सचेत संतुलन दर्शाता है।
उन्होंने कहा कि करार के अमल में आने के साथ ही इसके प्रावधानों की अब दोनों पक्षों पर कानूनी बाध्यता है।
बाद में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "हम इस करार को सद्भावना के साथ और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के सिद्धांतों के मुताबिक लागू करना चाहते हैं और हमें यकीन है कि अमेरिका भी ऐसा ही करेगा।"
राइस ने इसे दोनों देशों की कूटनीतिक विजय करार दिया। भारत और अमेरिका ने इस कठिन चुनौती को स्वीकार किया था और उसमें कामयाबी की है। अब ऐसा लगता है कि ऐसा कुछ नहीं जो दोनों देश साथ मिलकर नहीं कर सकें।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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