एनएचआरसी ने की बंदियों पर कार्यशाला आयोजित
नई द्ल्लिी, 11 अक्टूबर (आईएएनएस)। राजधानी में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में मानवाधिकार आयोग के सदस्यों और देश विदेश से आए प्रतिनिधियों ने बेवजह हिरासत में रखे जाने और कैदियों के साथ के होने वाले व्यवहार पर गहरी चिंता जताई।
'राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग' (एनएचआरसी) की ओर से शनिवार से शुरू हुई दो दिवसीय कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि हिस्सा लेने आईं 'पेनल रिफार्म्स इंटरनेशनल, यूनाइटेड किंगडम' की मानद अध्यक्ष बरोनेस विवियन स्टर्न ने कहा, " दिसंबर 1948 को जब संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने मानवाधिकारों की सार्वजनीन घोषणा अंगीकार की और उसका ऐलान किया तब मैं केवल नौ वर्ष की थी।"
उन्होंने कहा, "आज घोषणा के साठ वर्ष हो गए लेकिन बंदियों की स्थिति से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता है। हालांकि एनएचआरसी का विश्व में महत्वपूर्ण स्थान है और यह विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।"
कार्यशाला का आयोजन 'फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कार्मस एंड इंजस्ट्रीज' (फिक्की) के सभागार में किया गया।
एनएचआरसी के अध्यक्ष एस. राजेंद्र बाबू ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा, "हमारे सामने कई चुनौतियां हैं। हिरासत में लिए गए लोगों की न्यायिक प्रक्रिया में तेजी कैसे आए, इस पर विचार किया जाना बेहद जरूरी है।" पूर्व महान्यायवादी सोली सोराबजी ने कहा कि वर्तमान समय में ऐसी कार्यशालाओं का बड़ा महत्व है, क्योंकि प्रारंभिक सुनवाई के नाम पर जेल में बंद रखना किसी भी आपराधिक सजा का विकल्प नहीं हो सकता है।
कार्यशाला के पहले सत्र में 'राष्ट्रीय पुलिस आयोग' (एनपीसी) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए एचएचआरसी के सदस्य बी. सी. पटेल ने कहा, "देश में 60 प्रतिशत कैदियों की संख्या ऐसी है, जिन्हें बेवजह जेलों में रखा गया है। इन कैदियों पर जेल की 43.3 प्रतिशत राशि खर्च हो जाती है, जबकि इसे बचा जा सकता है।" इस कार्यशाला का आयोजन मानवाधिकार की सार्वजनीन घोषणा की 60वीं वर्षगांठ पर किया जा रहा है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।