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भारत-अमेरिका परमाणु करार पर लगी मुहर (राउंडअप)

By Staff
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वाशिंगटन/नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (आईएएनएस)। लगभग तीन वर्षो तक चली कूटनीतिक व राजनीतिक बहसबाजी के बाद आखिरकार ऐतिहासिक भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता संपन्न हो गया।

वाशिंगटन/नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (आईएएनएस)। लगभग तीन वर्षो तक चली कूटनीतिक व राजनीतिक बहसबाजी के बाद आखिरकार ऐतिहासिक भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता संपन्न हो गया।

इसके साथ ही दोनों देशों के बीच परमाणु व्यापार के रास्ते खुल गए और परमाणु क्षेत्र में भारत का पिछले तीन दशक से जारी अलगाव भी समाप्त हो गया। माना जा रहा है कि यह करार दोनों देशों के संबंधों को और प्रगाढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगी।

विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी और अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस ने अमेरिकी वित्त विभाग के बेंजमिन फ्रेंकलिन कक्ष में शुक्रवार देर रात 1.46 बजे हस्ताक्षर किए।

हस्ताक्षर से पहले इस अवसर को ऐतिहासिक बताते हुए राइस ने इस समझौते को अभूतपूर्व करार दिया। उन्होंने इसे भारत-अमेरिकी संबंधों में एक महत्वपूर्ण दिन बताया।

अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच 18 जुलाई 2005 को बनी सहमति के बाद इस करार को अमली जामा पहनाने में 1980 दिन लग गए। इस दौरान आए अनेक उतार-चढ़ावों को याद करते हुए राइस ने कहा, "बहुत से लोगों ने सोचा था कि यह दिन कभी नहीं आएगा। लेकिन अविश्वास के बादल अब छंट गए हैं।"

उन्होंने कहा कि इस करार का संपन्न होना भारत और अमेरिका के बीच सहभागिता की क्षमता को दर्शाता है। अविश्वास की वजह से इस क्षमता की कई दशकों तक अनदेखी होती रही और अब इसका पूरा एहसास हो चुका है।

राइस ने इसे दोनों देशों की कूटनीतिक विजय करार दिया। भारत और अमेरिका ने इस कठिन चुनौती को स्वीकार किया था और उसमें कामयाबी हासिल की है। अब लगता है कि ऐसा कुछ भी नहीं जो दोनों देश साथ मिलकर नहीं कर सकें।

करार पर दस्तखत के लिए नई दिल्ली से वाशिंगटन पहुंचे मुखर्जी ने इसे दोनों देशों के परिवर्तित संबंधों और भागीदारी का स्पष्ट संकेत बताया। उन्होंने कहा कि दोनों देश उस विचार और सहमति को क्रियान्वित करने की कोशिश करेंगे, जो उनके नेताओं के बीच जुलाई 2005 से मार्च 2006 तक बनी।

मुखर्जी ने कहा, "इस समझौते का महत्व यह है कि यह भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु सहयोग और व्यापार के क्षेत्र में पहला कदम है।" उन्होंने कहा कि यह अधिकारों और दायित्वों का सचेत संतुलन दर्शाता है।

उन्होंने कहा कि करार के अमल में आने के साथ ही इसके प्रावधानों की अब दोनों पक्षों पर कानूनी बाध्यता है। हम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए असैन्य परमाणु सहयोग को प्रोत्साहित करना चाहेंगे।

पाकिस्तान की ओर से की गई भारत जैसे परमाणु करार की मांग पर मुखर्जी ने कहा, "हम समझते हैं कि हरेक देश को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल का हक है।"

परमाणु करार के बारे में पाकिस्तान की आशंकाओं के बारे में पूछे गए एक अन्य प्रश्न के जवाब मे मुखर्जी ने कहा कि भारत पाकिस्तान के साथ संबंध बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है और वह सभी लंबित मसलों को व्यापक बातचीत की प्रक्रिया के माध्यम से सुलझाने की कोशिश कर रहा है।

उन्होंने पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के हाल के उस बयान को बेहद उत्साहजनक बताया जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत पाकिस्तान के लिए कभी भी खतरा नहीं रहा और उनके देश को भारत-अमेरिकी परमाणु करार से कोई ऐतराज नहीं है।

उन्होंने कहा, "हम इस करार को सद्भावना के साथ और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के सिद्धांतों के मुताबिक लागू करना चाहते हैं और हमें यकीन है कि अमेरिका भी ऐसा ही करेगा।"

भारत ने संकेत दिया है कि उसे अमेरिका और पाकिस्तान के बीच असैन्य परमाणु करार पर कोई ऐतराज नहीं होगा। क्योंकि उसका मानना है कि प्रत्येक देश को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल करने का अधिकार है।

अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु करार पर अंतिम रूप से हस्ताक्षर हो जाने के बाद भारत ने कहा है कि वह सिर्फ 123 समझौते से बंधा है और साथ ही उसने विश्वास व्यक्त किया है कि अमेरिका भी इसे अंतर्राष्ट्रीय कानूनोंे के मुताबिक सद्भावनापूर्वक लागू करेगा।

उल्लेखनीय है कि परमाणु करार का भारत में व्यापक विरोध हुआ। वामदलों ने तो इसके विरोध में केंद्र सरकार से समर्थन तक वापस ले लिया। प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी करार के मौजूदा स्वरूप पर आपत्ति जताई है और देश हित के खिलाफ बताया है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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