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उड़ीसा व कर्नाटक सरकारों ने बलवाइयों को खुली छूट दी : कुरैशी (साक्षात्कार)

By Staff
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नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष मोहम्मद शफी कुरैशी अल्पसंख्यकों की मौजूदा स्थिति से चिंतित हैं। उनका मानना है कि जहां उड़ीसा और कर्नाटक में ईसाई समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है वहीं हर आतंकवादी घटना के बाद, शक की सुई मुसलमानों की ओर घुमा दी जाती है। ऐसे ही कई मुद्दों पर कुरैशी ने आईएएनएस से विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत है इस बातचीत के प्रमुख अंश:-

नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष मोहम्मद शफी कुरैशी अल्पसंख्यकों की मौजूदा स्थिति से चिंतित हैं। उनका मानना है कि जहां उड़ीसा और कर्नाटक में ईसाई समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है वहीं हर आतंकवादी घटना के बाद, शक की सुई मुसलमानों की ओर घुमा दी जाती है। ऐसे ही कई मुद्दों पर कुरैशी ने आईएएनएस से विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत है इस बातचीत के प्रमुख अंश:-

सवाल : देश में अल्पसंख्यकों की मौजूदा स्थिति को आप कैसे देखते हैं?

जवाब : जो देखने में आ रहा है, उससे लग रहा है कि अल्पसंख्यक परेशान हैं। चाहे वे ईसाई हों या मुसलमान। हाल में उड़ीसा में जो कुछ हुआ और जो कुछ पिछले कई महीनों से वहां चल रहा है, बेहद चिंता का विषय है। धर्मातरण वहां पर हो रहा है। जाहिर तौर पर इसके खिलाफ लोगों में गुस्सा है। स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के बाद वहां के हालात और खराब हुए हैं। सबसे ज्यादा नुकसान ईसाईयों को हुआ है।

सवाल : उड़ीसा में जो कुछ हुआ और जो कुछ हो रहा है। उसे रोकने के लिए आयोग ने क्या किया?

जवाब : आयोग ने दो प्रतिनिधिमंडल उड़ीसा भेजे। वहां से जो रिपोर्ट आई है, मुझे लगता है कि राज्य सरकार को जो कदम उठाना चाहिए था, उसने नहीं उठाया। ऐहतियाती कदम उठाना तो सरकार के हाथों में है। इसमें काफी ढिलाई हुई। उसके परिणामस्वरूप जान -माल का काफी नुकसान हुआ।

सवाल : उड़ीसा में फैली हिंसा के लिए किसे जिम्मेदार मानते हैं आप?

जवाब : उड़ीसा में जो कुछ हुआ वह निंदनीय है। मैं किसी व्यक्ति विशेष या कौम को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराऊंगा। राज्य सरकार ने वक्त पर कोई कदम नहीं उठाया, वर्ना समय रहते इस पर काबू पा लिया जाता। एक चर्च पर हमला हुआ तो दूसरे को बचाया जा सकता था। लेकिन बलवाइयों को सरकार ने खुली छूट दे दी। इस तरह की हरकतें मुल्क के अमन-चमन को नुकसान पहुंचाती हैं।

सवाल : लेकिन राज्य सरकार ने केंद्र सरकार पर असहयोग का आरोप लगाया है?

जवाब : मैंने उड़ीसा सरकार से राज्य में हुई हिंसा के बारे में रिपोर्ट मंगवाई तो सरकार ने अर्धसैनिकों बलों की कमी का रोना रोया। फिर इस मुद्दे पर मैंने गृह मंत्री से मुलाकात की। गृह मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार को जितनी मदद चाहिए, केंद्र देने को तैयार है। राज्य सरकार मांगे तो केंद्र हेलिकाप्टर भी देने को तैयार है। जितना पुलिस बल मांगा गया था, केंद्र ने दिया है।

सवाल : आपने अभी कहा कि धर्मांतरण हो रहा है और जाहिर तौर पर लोगों में इसके खिलाफ गुस्सा है?

जवाब : भारी मात्रा में कनवर्जन की बात तो गलत है। सबूत नहीं है इसके। इक्का- दुक्का मामले जरूर हैं। हमने उड़ीसा और कर्नाटक की सरकारों से जब पूछा कि बलपूर्वक धर्मातरण की कितनी शिकायतें आपके पास आई हैं तो पता चला कि उड़ीसा में मुश्किल से दो या तीन ऐसी शिकायतें हैं, जबकि कर्नाटक में तो कुछ भी नहीं था।

सवाल : आतंकवाद और मुसलमान। आपकी क्या सोच है इस बारे में?

जवाब : आतंकवादियों का कोई धर्म तो होता नहीं है। आतंकवादी इंसानियत के दुश्मन हैं। मुल्क के अमन को तहत-नहस करना उनका मकसद है। उनकी जितनी निंदा की जाए, कम है। लेकिन आतंकवाद को किसी खास फिरके के साथ जोड़ना ठीक बात नहीं है। उसे किसी कौम से जोड़ना गलत है। इसके लिए मीडिया भी दोषी है। हर आतंकवादी घटना के बाद वह खबरों को इस प्रकार पेश करता है कि उस घटना को हिन्दू ने किया है या मुसलमान ने। यह खतरनाक ट्रेंड है।

सवाल : लेकिन आतंकवाद की जितनी घटनाएं होती हैं और उनमें जो नाम सामने आते हैं, वे मुसलमानों के ही होते हैं। अक्सर ऐसा पाया गया है।

जवाब : मैं भी मानता हूं कि ऐसा हो रहा है। मैं उनका बचाव नहीं कर रहा हूं। लेकिन मेरा कहना है कि बाकायदा तहकीकात के बाद यह साबित होता है तो उसे सजा दो। कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन शक की सुई एक खास कौम पर ही उठाना ठीक नहीं है। चंद ऐसे लोगों के लिए पूरी कौम को बदनाम करना भी उचित नहीं है।

सवाल : तो क्या ऐसे में हर मुसलमान खौफ के माहौल में जी रहा है। क्या ये सच है? आप क्या कहेंगे?

जवाब : खौफ तो है लोगों में। जब भी धमाका होता है तो शक की सुई एक खास कौम की ओर घुमा दी जाती है। यह गलत है। मीडिया को ऐसे मामलों में संवेदनशीलता से पेश आना चाहिए और पुलिस को गैरजिम्मेदाराना तरीके से तहकीकात नहीं करनी चाहिए।

सवाल : आजकल पढ़े लिखे और देश के ही युवा आतंकवादी घटनाओं में संलिप्त पाए जा रहे हैं। क्या यह युवाओं का भटकाव है या कुछ और?

जवाब : भटकाव तो है। पढ़े लिखे लोग सामने आ रहे हैं। हमें इसके पीछे के कारणों में जाना होगा।

सवाल : आपको लगता नहीं कि अल्पसंख्यक आयोग दंतहीन है?

जवाब : नहीं ऐसा नहीं है। कई मौकों पर हमारे द्वारा उठाए गए कदमों का असर हुआ है। महाराष्ट्र में मुंबई बम धमाकों के बाद फैली सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों को हमने न्याय दिलाया। वहां की सरकार ने हमारी बातें सुनीं। दिल्ली के 1984 के दंगों के पीड़ितों की तर्ज पर मुंबई दंगों के पीड़ितों को भी मुआवजा मिला। इसलिए आयोग को आप दंतहीन नहीं कह सकते। हम कार्रवाई तो कर नहीं सकते। लेकिन हमारी सिफारिशों पर जो कार्रवाई होनी चाहिए, वह नहीं हो रही है। हमारी सिफारिशों पर राज्य सरकारें इंटरेस्ट नहीं दिखातीं। बेवजह विलंब करती हैं राज्य सरकारें। हम चाहते हैं कि आयोग का संवैधानिक दर्जा बरकरार रहे। अल्पसंख्यक मंत्रालय को संसद में इस संबंध में विधेयक पेश करना है। मुझे पूरा यकीन है कि जब यह विधयेक संसद में पेश होगा तो कोई भी राजनीतिक दल इसका विरोध नहीं करेगा।

सवाल : नानावती आयोग की रिपोर्ट में नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट दी गई है। आप इसे कैसे देखते हैं?

जवाब : मुझे तो कुछ समझ में नहीं आया। क्लीन चिट कैसे दे दी गई? इससे शक पैदा होता है। आयोगों की साख खत्म होती है। बनर्जी आयोग ने बाकायदा जांच की। उसने अपनी रिपोर्ट दी। उस रिपोर्ट को उल्टा करने के लिए नानावती आयोग बिठाया गया। साफ जाहिर है इससे। बनर्जी रिपोर्ट को खारिज करने के लिए नानावती आयोग की रिपोर्ट लिखवाई गई है। ओवरनाइट कैसे क्लीन चिट दे सकते हैं? सुनियोजित तरीके से यह सब किया गया है। यह हाल रहा तो आयोगों की विश्वसनीयता पर कौन ऐतबार करेगा। आयोगों पर जब शक पैदा हो जाए तो उनका महत्व और उद्देश्य समाप्त हो जाता है। बड़ी आश्चर्यजनक है नानावती आयोग की रिपोर्ट। इसको बिठाया भी था राज्य सरकार ने ही तो।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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