बुनकरों की भी सरजमीं है आजमगढ़
सरायमीर(आजमगढ़), 3 अक्टूबर (आईएएनएस)। हाल के दिनों में उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले की पहचान आतंकवाद की पौध के रूप की जाने लगी है लेकिन इस बात से अभी बहुत लोग अनजान होंगे कि कभी यह जिला बनारसी साड़ियों की बुनाई का एक अहम केंद्र हुआ करता था।
सरायमीर(आजमगढ़), 3 अक्टूबर (आईएएनएस)। हाल के दिनों में उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले की पहचान आतंकवाद की पौध के रूप की जाने लगी है लेकिन इस बात से अभी बहुत लोग अनजान होंगे कि कभी यह जिला बनारसी साड़ियों की बुनाई का एक अहम केंद्र हुआ करता था।
चीन की बनी हुई सिल्क की सस्ती साड़ियों का जमाना आया तो जिले के बुनकरों के हैंडलूमों में ताला लग गया और युवा पीढ़ी को अपनी रोजी-रोटी की तलाश में खाड़ी देशों का रुख करना पड़ा।
स्थानीय निवासी अबू बशर सिद्दीकी के परिवार के छह लड़के संयुक्त अरब अमीरात(यूएई) में काम करते हैं। सिद्दीकी का कहना है, "एक वाहन चालक या रसोइया महीने में 30,000 रुपये तक कमा लेता है जबकि एक कुशल बुनकर की कमाई 3,000 रुपये तक बड़ी मुश्किल से हो पाती है। ऐसे में हम कैसे उम्मीद करेंगे कि युवा अपने पुस्तैनी कामों को करते रहेंगे और यहीं रहेंगे।"
जिले के मुबारकपुर कस्बे में 1,000 से अधिक लूम हैं लेकिन इनमें से 200 ही चल रहे हैं। इसी तरह सरायमीर में भी 2,500 से अधिक लूम बंद होने की कगार पर हैं। अगर कुछ लूम चल भी रहे हैं तो उनमें भी गोरखपुर और मऊ जिले की बेडसीट की बुनाई का काम चल रहा है।
आजमगढ़ में एक निर्यात कंपनी की मालकिन माधुरी शर्मा का कहना है कि जो लोग पहले बुनाई-कढ़ाई के कामों में लगे थे उनके बेटे और पोतों ने खाड़ी देशों की ओर रुख कर लिया।
जिले के पुलिस अधीक्षक रमित शर्मा ने बताया कि हर महीने करीब 1,500 आवेदन पासपोर्ट के लिए प्राप्त होते हैं और इनमें से ज्यादातर सरायमीर क्षेत्र से ही होते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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