क्लेयर नाग के लिए सपने के सच होने जैसा था समाचार वाचिका बनना
नई दिल्ली, 3 अक्टूबर (आईएएनएस)। रांची के दूर-दराज के एक आदिवासी कस्बे की रहने वाली और वहीं पली-बढ़ी क्लेयर नाग के लिए देश की राजधानी को अपना बसेरा बनाना और आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग में समाचार वाचिका बन करोड़ों लोगों को दुनियाभर में पल-पल घटित हो रही घटनाओं की जानकारी देने का माध्यम बनना, किसी सपने के सच हो जाने जैसा था।
नई दिल्ली, 3 अक्टूबर (आईएएनएस)। रांची के दूर-दराज के एक आदिवासी कस्बे की रहने वाली और वहीं पली-बढ़ी क्लेयर नाग के लिए देश की राजधानी को अपना बसेरा बनाना और आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग में समाचार वाचिका बन करोड़ों लोगों को दुनियाभर में पल-पल घटित हो रही घटनाओं की जानकारी देने का माध्यम बनना, किसी सपने के सच हो जाने जैसा था।
आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग में 27 बरस सेवाएं देने के बाद पिछले साल मार्च में सेवानिवृत्त हुईं क्लेयर बचपन से ही लीक से हटकर कुछ करना चाहती थीं। पिता की प्रेरणा से अखबार पढ़ना शुरू किया और धीरे-धीरे देश-दुनियाभर की खबरों में रुचि जग उठी।
राजनीति शास्त्र में एम.ए. क्लेयर शादी के बाद 1980 में दिल्ली आईं। उस समय तक उन्होंने आकाशवाणी भवन में कदम तक नहीं रखा था। एक दिन समाचार पत्र में छपे आकाशवाणी के विज्ञापन को देख उनके मन में आस जगी और तुरत-फुरत आवेदन कर डाला। लिखित परीक्षा, स्वर परीक्षा और साक्षात्कोर की सीढ़ियां एक-एक कर के पार होती चली गईं और एक दिन क्लेयर ने खुद को आकाशवाणी के समाचार कक्ष में पाया।
क्लेयर बताती हैं, "उन दिनों आकाशवाणी में देवकीनंदन पांडे, विनोद कश्यप, रामानुज प्रसाद सिंह, जयनारायण शर्मा, मनोजकुमार मिश्र, अशोक वाजपेयी, राजेंद्र अग्रवाल जैसे मंजे हुए समाचार वाचक थे। मुझे विद्वानों के बीच काम करने और उनसे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। शुरू-शुरू में मुझे कुछ संकोच हुआ लेकिन मेरे आत्मविश्वास ने मुझे टिकाए रखा।"
वे बताती हैं कि उन दिनों माइक पर आने का मौका सहजता से नहीं मिलता था। उनका चयन समाचार वाचक एवं अनुवादक (एनआरटी)पद पर हुआ था। बीते दिनों को याद करते हुए क्लेयर कहती हैं, " उन दिनों अनुवाद खूब कराते थे और पूरी तरह मंजने के बाद ही माइक पर आने का मौका मिल पाता था। " क्लेयर के लिए यह काम एकदम नया था और उस पर देवकीनंदन पांडे, विनोद कश्यप, अशोक वाजपेयी जैसे दिग्गजों की उपस्थिति। शुरू-शुरू में उन्हें कुछ परेशानी हुई लेकिन वरिष्ठों के मार्गदर्शन की बदौलत धीरे-धीरे सब सहज होता चला गया।
क्लेयर ने आकाशवाणी पर खबरें पढ़ने की शुरूआत 'धीमी गति के समाचार' वाले बुलेटिन से की। करीब साल भर बाद उन्हें पहली बार पांच मिनट का बुलेटिन पढ़ने का मौका मिला। पहले दिन के समाचार वाचन के अनुभव के बारे में पूछने पर क्लेयर ने बताया कि समाचार बुलेटिन समाप्त होते ही उद्घोषक उनसे मिलने आए और उन्हें बहुत सराहा। उसके बाद क्लेयर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। धीरे-धीरे लोग आवाज पहचानने लगे। रांची के लोग तो बहुत ही खुश हुए।
उन्हें लगता है कि समाचार प्रभाग में अस्सी के दशक के माहौल में और अब में जमीन आसमान का अंतर आ गया है। बुलेटिनों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है और उसी हिसाब से काम भी पहले की तुलना में काफी बढ़ गया है। टाइपराइटरों की जगह कंप्यूटर ने ले ली है। इससे संपादन अपेक्षाकृत आसान हो गया है।
वे कहती हैं कि जब उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की थी तो उस समय लगता था कि हम पर बड़ों का साया है। उनसे जितना सीखेंगे अच्छा होगा, लेकिन कंप्यूटर युग में जीने वाले आजकल के बच्चों को लगता है कि जिन चीजों की उन्हें जानकारी है, बड़े उनके बारे में नहीं जानते। इसलिए बड़ों की बाते गंभीरता से सुनना, उनका सम्मान करना और उनसे सीखने की कोशिश करना जैसी बाते अब पुरानी पड़ गई हैं। आकाशवाणी श्रव्य माध्यम है। श्रोता एक-एक शब्द सुनकर आत्मसात करते हैं इसलिए सभी को अपना काम जिम्मेदारी से काम करना चाहिए। उनका मानना है कि नए लोगों में समय की पाबंदी की भी कमी है, जबकि आकाशवाणी में एक-एक क्षण कीमती होता है।
क्लेयर आकाशवाणी में बिताए अपने दिनों को याद कर कहती हैं कि उन्होंने पूरी ईमानदारी और निष्ठा से काम किया और बदले में आकाशवाणी ने भी उन्हें बहुत कुछ दिया।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
**