कौओं की कम होती संख्या बनी परेशानी का सबब
वाराणसी, 1 अक्टूबर (आईएएनएस)। शहर में कौओं की संख्या में लगातार आ रही कमी न सिर्फ पर्यावरणविदों के लिए परेशानी का सबब है, बल्कि तर्पण और श्राद्ध जैसे धार्मिक कर्मकांड करवाने वाले पंडित भी इससे परेशान हैं। उन्हें अब अपने यजमानों के लिए आटे का कौआ बनाना पड़ रहा है।
तर्पण के समय प्रतीकात्मक कौओं से काम चलाने की बात से कौओं के अस्तित्व पर मंडराते संकट का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
पर्यावरण संतुलन में अहम भूमिका निभाने वाले कौओं पर मंडरा रहे संकट के बारे में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग के प्रोफेसर डा. बी.डी. त्रिपाठी कहते हैं, "ऐसा दो कारणों से हो रहा है पहला तो यह कि जीवित प्राणियों की एक 'फूड चेन' होती है जो आजकल अव्यवस्थित हो गई है, आदमी के खान-पान के तरीकों में भी काफी बदलाव आ गया है। इसकी वजह से कौओं की प्रजनन क्षमता कम होती जा रही है। दूसरी बात यह कि जंगलों की धड़ल्ले से हो रही कटाई से भी उनके लिए आवास की समस्या भी उत्पन्न हो गई है, क्योंकि कौए अपना घोसला एकांत में बनाते हैं जो आजकल उन्हें कम ही मिल पा रहा है।"
पितृ विसर्जन पर तर्पण और श्राद्घ में भी कौए का अपना अलग महत्व होता है। शास्त्रीय परंपरा में कौए का महत्व बताते हुए वेदों के जानकार जानकी प्रसाद द्विवेदी बताते हैं कि मृत्यु के भय से एक बार यमराज को भी कौए का रूप धारण करना पड़ा था, तब से कौए को यमराज का प्रतीक माना जाता है।
उन्होंने बताया कि जब कोई तर्पण या श्राद्ध करता है तो वह सबसे पहले कौए को खिलाता है क्योंकि मान्यता है कि श्राद्ध और तर्पण के बाद कौओं को खाना खिलाने से उम्र बढ़ती है लेकिन विडंबना यह है कि आज तर्पण और श्राद्ध करने वालों की भीड़ तो बढ़ रही है लेकिन कौओं की संख्या कम होती जा रही है।
आजकल मजबूरी में यजमानों ने भी कृत्रिम कौए को खाना खिलाकर पंडित जी से आशीर्वाद लेना स्वीकार कर लिया है। पंडित के द्वारा लाए आटे के कौए को प्रतीकात्मक रूप से खाना खिलाने वाले शिवदेव नारायण ने बताया कि पहले जब हम लोग आते थे तब कौओं का झुंड यहां आगे पीछे खाने के लिये लगा रहता था लेकिन पिछले तीन-चार वर्षो से इनकी संख्या लगातार कम होती दिखाई दे रही है।
बीते सोमवार को पितृमोक्ष अमावस्या के दिन भी वाराणसी के गंगा घाट पर प्रत्येक पुरोहित के सामने आटे से निर्मित काले रंग का एक- एक कृत्रिम कौआ रखा हुआ था, जो बता रहा था कि पर्यावरण के एक सजग प्रहरी का अस्तित्व संकट में है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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