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कश्मीर के पश्मीना कारीगरों को मिलेगा बौद्धिक संपदा अधिकार

By Staff
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नई दिल्ली, 25 सितम्बर (आईएएनएस)। कश्मीर में सदियों से घरेलू स्तर पर पश्मीना का काम कर रहे कारीगरों को अब पश्मीना ब्रांड पर विशिष्ट अधिकार प्राप्त होगा। केंद्र सरकार ने इसे बौद्धिक संपदा के अधिकार के तहत "भौगोलिक संकेत" (जियोग्राफिकल इंडीकेशन-जीआई) घोषित करने का फैसला किया है।

जीआई एक नाम या चिह्न् है जो किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र से आने वाले उत्पादों को दिया जाता है।

सरकार ने यह घोषणा कश्मीर हैंडमेड पश्मीना प्रमोशन ट्रस्ट (केएचपीपीटी), क्राफ्ट्स डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (सीडीआई), पश्मीना कारीगरों के संगठन तहफुज और वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) के बीच हुए एक समझौते के बाद की गई है।

हिमालय के ऊपरी इलाकों में रहने वाली पश्मीना नामक बकरी से मिलने वाले बेहतरीन ऊन से कश्मीरी करीगर शॉल और स्कार्फ बनाते हैं जिनकी देश-विदेश में भारी मांग है। माना जा रहा है कि गत 12 सितम्बर को जारी की गई सरकार की अधिसूचना इन कारीगरों के लिए भारी लाभदायक साबित होगी।

उल्लेखनीय है कि हाथ से पश्मीना का काम करने वाले कारीगरों को मिल मालिकों से कड़ी चुनौती मिलने लगी है क्योंकि मिलों से बनने वाले उत्पाद, हाथ से बने उत्पादों की तुलना में बेहद किफायती होते हैं और उनकी बनावट भी त्रुटि रहित होती है।

केएचपीपीटी और डब्ल्यूटीआई के न्यासी अनिरुद्ध मुखर्जी ने कहा, "हमने सरकार का ध्यान इस ओर खींचा कि कश्मीर के पश्मीना कारीगरों की 600 वर्षो में बनाई गई सद्भावना का लाभ वे लोग उठा रहे हैं जिनका इन उत्पादों से कोई लेना देना नहीं है।"

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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