दम तोड़ने के कगार पर है बनारस की धातु शिल्पकला
वाराणसी, 21 सितम्बर (आईएएनएस)। सैकड़ों वर्षो से पूरी दुनिया में मशहूर बनारस की धातु शिल्पकला 'रिपोजी वर्क' आज बेहद बदहाली के दौर से गुजर रही है।
देवी-देवताओं के छत्र, मुकुट, दरवाजों पर उम्दा नक्काशी के साथ-साथ राज परिवारों के आभूषण समेत महलों और मंदिरों की दीवारों पर धातु की नक्काशी तथा सोने चांदी के बर्तन बनाने का कार्य को बनारस के कारीगर ही अंजाम देते रहे हैं।
यहां के कारीगर देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर अपनी हस्तकला का करिश्मा दिखाते रहे हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर के गुंबद पर लगे स्वर्णपत्र, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर की गई नक्काशी, पूरे देश में राणी सती के मंदिरों में अद्भुत चांदी व सोने को उभारकर की गयी अद्वितीय कलाकारी से लेकर भुवनेश्वर के प्राचीन जगन्नाथ मंदिर के अन्दर की गई चांदी की महीन मीनाकारी तक सभी उत्कृष्ट काम बनारस के ही धातु शिल्पियों की विशिष्ट शैली का नमूने हैं।
यही नहीं बनारस के बने सोने और चांदी के नक्काशीदार बर्तनों और ऐश ट्रे की यूरोप और अमेरिका के बाजारों में शुरू से ही खास मांग रही है, लेकिन यह उद्योग आज न तो प्रतिस्पर्धा में है और न ही चलन में। यही वजह है कि यह उद्योग दम तोड़ रहा है और इसके बचे हुए कारीगरों के सामने भुखमरी की स्थिति आ गई है।
इस स्थिति से निपटने के लिए वाराणसी में 200 रिपोजी शिल्प कलाकारों की एक 15 दिवसीय कार्यशाला चलाई जा रही है, जिसमें भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त डिजाइनर टी. एम. त्रिपाठी इस प्राचीन कला को आधुनिक मांग के हिसाब से ढालने के गुर सिखा रहे हैं।
त्रिपाठी ने बताया कि कार्यशाला के माध्यम से यूरोप, अमेरिका और देश के प्रमुख बाजारों की मांग के अनुरूप नई डिजाइनों के बारे में बताया जा रहा है। आने वाले समय में सरकार के सहयोग से इसे विदेशी बाजारों से जोड़ने का कार्य विभिन्न माध्यमों से किया जाएगा।
वर्तमान में धातु के बने गिफ्ट का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है जिसके चलते बनारस के कारीगरों को बड़ी संख्या में काम मिलने का अवसर प्राप्त होगा और देश को विदेशी पूंजी भी प्राप्त होगी।
शिल्पकला की दुर्दशा के कारणों को लेकर मानव कल्याण संघ के निदेशक डा. रजनीकांत ने बताया कि डब्ल्यूटीओ और खुले बाजार के कारण चीन द्वारा बड़े पैमाने पर मशीन से निर्मित सामग्री (मूल रूप से प्लास्टिक और सिंथेटिक्स से निर्मित) धातु की शक्ल में देश के बाजारों में उतारकर धातु शिल्प कारीगरों के सामने बड़ा संकट पैदा कर दिया गया है। इसकी वजह से बनारस के धातु शिल्पियों के सामने पहचान और रोजी रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है।
दूसरा प्रमुख कारण यह है कि मुरादाबाद का पीतल और तांबा उद्योग, जहां पूर्ण रूप से मशीन द्वारा काम होता है, लेकिन उसे नाम दिया जाता है हस्तशिल्प। डा. रजनीकांत कहते हैं कि हस्त शिल्प के नाम पर मुरादाबाद के व्यापारियों को सस्ते दामों पर धातुएं मिल जाती हैं और बैंक से ऋण भी मिल जाता है। लेकिन पूरी तरह से शिल्पकला पर निर्भर बनारस के कारीगरों को ऊंचे दाम पर धातुएं मिलती हैं और बैंक उन्हें ऋण भी नहीं देते हैं।
यही कारण है कि यहां की तकनीक और हस्तशिल्प उच्च स्तर का होने के बावजूद भी स्थिति निम्नस्तरीय बनी हुई है। वाराणसी में तैयार माल पर पालिश करने का कोई इंतजाम नहीं है इसी कारण यहां के कारीगर सिर्फ मजदूर के रूप में कार्य करते है और मुंबई, गुजरात, बेंगलुरू व दिल्ली जैसे शहरों को अत्यंत कम मजदूरी के दर पर माल तैयार करके दे देते हैं।
राज्य सरकार से पुरस्कार प्राप्त किरण प्रसाद विश्वकर्मा कहते हैं, "यह तो चिन्ता की बात है ही कि हम लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है। यदि इसे बचाने का ठोस प्रयास नहीं किया गया तो हम तो भूखों मरेंगे ही, यह कला भी मर जाएगी।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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