शिव की आरती के बाद ही रोजा खोलती हैं नूर फातिमा (संशोधित)
वाराणसी, 21 सितम्बर (आईएएनएस)। एक तरफ जहां जात-पात और मजहबी दीवारें लोगों के बीच दूरियां बढ़ा रही हैं, वहीं वाराणसी की नूर फातिमा शिव पूजा करते हुए रोजे रख कर नफरत के सौदागरों शानदार चुनौती दे रही हैं।
पांचों वक्त की नमाजी नूर फातिमा पेशे से वकील हैं। उन्होंने अपने घर से सटे हुए भूखंड पर ही भगवान शिव का एक मंदिर बनवाया है, जिसमें उनकी उतनी ही श्रद्घा है जितनी कि अल्लाह तआला में है। नूर की मानें तो शिव मंदिर बनवाने का आदेश खुद भगवान शिव ने ही उन्हें सपने में दिया था। जिसे उन्होंने पूरा करके उनके आदेश का पालन किया है।
आजकल रमजान के महीने में उनकी जिम्मेदारी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। रोजा रखने के साथ-साथ उन्हें भगवान शिव की आरती भी करनी पड़ती है। नूर कहती हैं कि वे शिवजी की आरती कर लेने के बाद ही रोजा खोलती हैं।
वैसे तो नूर की दिनचर्या बहुत व्यस्तता भरी रहती हैं। लेकिन इस व्यस्तता में भी वे न तो नमाज अदा करना भूलती हैं और न ही रुद्राक्ष की माला से 'ओम नम: शिवाय' का जाप करना। 108 बार 'ओम नम: शिवाय' का जाप करने के बाद ही वे अदालत जाती हैं।
रमजान महीने में शाम को मंदिर में आरती करने के बाद ही वे अपने परिवार के साथ रोजा खोलती हैं। नूर कहती हैं कि रमजान का महीना सबसे मुकद्दस महीना होता है। यह आपस में प्रेम और भाईचारा बढ़ाने के लिए आता है।
उनका भी मानना है कि अल्लाह, ईश्वर और गॉड सब एक ही खुदा के नाम हैं, जिन्हें इंसान ने अपनी सुविधा के हिसाब से बना लिया। नूर कहती हैं, " मेरी समझ में यह नहीं आता है कि यदि हम सब एक ही ईश्वर के बन्दे हैं, तो आपस में लड़ते क्यों हैं।"
मजहबी दूरियों के बारे में नूर का कहना है कि ये सब हमारे देश के सियासी नेताओं की चाल है। वे अपना उल्लू सीधा करने के लिए लोगों को आपस में लड़ाते रहते हैं।
नूर मुकम्मल ईमान वाले को ही सच्चा मुसलमान मानती हैं। वे कहती हैं कि ढोंगी सभी धर्मो में हैं और इन्हीं ढोंगियों ने धर्म को संकीर्ण बना डाला है। इसीलिए मजहब के नाम पर खून-खराबा भी हो रहा है।
वाराणसी की रुद्र बिहार कालोनी में नूर का परिवार अकेला मुस्लिम परिवार है। इस कालोनी में नूर की बहुत इज्जत की जाती है।
इसी कालोनी के रहने वाले सुजीत कुमार सिंह ने बताया कि जब नूर ने मंदिर बनवाना शुरू किया तो उन लोगों ने समझा कि यह महिला सस्ती लोकप्रियता पाना चाहती है, लेकिन जब नियमित पूजा पाठ और नमाज एक साथ करते हुए लोगों ने उन्हें देखा तो लोगों की निगाह में उनकी प्रतिष्ठा दोगुनी हो गई। साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए नूर के इस प्रयास को सभी सराहनीय मानते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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