बुश प्रशासन ने परमाणु करार पर स्पष्ट उत्तर नहीं दिया
वाशिंगटन, 19 सितम्बर (आईएएनएस)। भारत-अमेरिका असैनिक परमाणु समझौते के अमेरिकी कांग्रेस में पेश होने और उसके मंजूरी के अंतिम चरण में होने के बाद भी परमाणु ईंधन की आपूर्ति और भारत के परमाणु परीक्षण के अधिकार पर बुश प्रशासन ने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया है।
वाशिंगटन, 19 सितम्बर (आईएएनएस)। भारत-अमेरिका असैनिक परमाणु समझौते के अमेरिकी कांग्रेस में पेश होने और उसके मंजूरी के अंतिम चरण में होने के बाद भी परमाणु ईंधन की आपूर्ति और भारत के परमाणु परीक्षण के अधिकार पर बुश प्रशासन ने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया है।
क्या ईंधन आपूर्ति केवल 'राजनीतिक प्रतिबद्धता' है, जैसा आश्वासन अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने दिया है या फिर कानूनी बाध्यता है जिस पर भारत सरकार जोर दे रही है? क्या भारत के परमाणु परीक्षण करने के बाद भी अमेरिका-भारत परमाणु समझौता जारी रहेगा और यदि अपने घरेलू कानून के कारण अमेरिका भारत को ईंधन नहीं दे पाएगा तो क्या वह अन्य देशों को इसके लिए बाध्य करेगा?
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिन पर गुरुवार को समझौते के निरीक्षण के लिए सीनेट की विदेश संबंध समिति की बैठक में भी सरकारी पक्ष स्पष्ट उत्तर देने से बचने की कोशिश करता रहा।
समिति के कार्यवाहक डेमोक्रेटिक अध्यक्ष क्रिस डॉड और समिति में शामिल रिपब्लिकन डिक लुगार के प्रश्नों के उत्तर में विदेश विभाग के विदेश सहायक मंत्री विलियम बर्न्स और हथियार नियंत्रण विभाग के वरिष्ठ अधिकारी जॉन रूड ने केवल यही कहा कि समझौता अमेरिकी कानून के अनुसार ही है।
लेकिन ये उत्तर समझौते पर कोई विशेष प्रकाश नहीं डालते और उनकी व्याख्या के लिए बहुत गुंजाइश छोड़ते हैं।
ईंधन आपूर्ति के आश्वासन पर बर्न्स ने 'राजनीतिक प्रतिबद्धता' और 'कानूनी बाध्यता' के बीच अंतर करते हुए कहा कि 123 समझौता इसके लिए एक कानूनी ढांचा उपलब्ध कराता है, लेकिन अमेरिका इसके पालन के लिए बाध्य नहीं है।
डॉड के इस प्रश्न पर कि भारत के कार्यों के कारण यदि समझौता तोड़ने की परिस्थिति पैदा हुई तो, क्या अमेरिका अन्य देशों पर ईंधन आपूर्ति जारी रखने के लिए दबाव डालेगा?
रूड ने कहा कि पहले समझौता तोड़ना और उसके बाद ईंधन आपूर्ति के वैकल्पिक उपाय करना असंगत होगा।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।