क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

अमेरिकी आर्थिक संकट से से प्रभावित होगा भारत भी(विश्लेषण)

By Staff
Google Oneindia News

नई दिल्ली, 17 सितम्बर (आईएएनएस)। जिन्हें दवा देना थी , वे खुद मर्ज के शिकार हो गए हैं। दुनिया भर में वित्तीय मामलों पर सलाह देने के लिए विख्यात अमेरिका की दो भारी भरकम वित्तीय फर्मों लेहमैन ब्रदर्स और मेरिल लिंच अपनी वित्तीय स्थिति को खुद ही नहीं संभाल पाए।

नई दिल्ली, 17 सितम्बर (आईएएनएस)। जिन्हें दवा देना थी , वे खुद मर्ज के शिकार हो गए हैं। दुनिया भर में वित्तीय मामलों पर सलाह देने के लिए विख्यात अमेरिका की दो भारी भरकम वित्तीय फर्मों लेहमैन ब्रदर्स और मेरिल लिंच अपनी वित्तीय स्थिति को खुद ही नहीं संभाल पाए।

लेहमैन ब्रदर्स का दीवाला निकल गया है। इस 158 साल पुरानी अमेरिकी फर्म ने खुद को दीवालिया घोषित कर दिया है। इससे पहले एक अन्य अमेरिकी वित्तीय फर्म मेरिल लिंच को भी दीवालिया होने के कगार पर पहुंचने के बाद अमेरिका के बैंक ऑफ अमेरिका ने लगभग 50 अरब डॉलर में उसे खरीद कर उस पर ताला लगने से बचाया।

कुछ समय पहले ही एक और प्रमुख अमेरिकी वित्तीय कंपनी बीयर स्टर्न्‍स को जेपी मोर्गन ने खरीद कर बंद होने से बचाया, अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिकी सरकार ने फेडरल रिजर्व के माध्यम से 30 अरब डालर का ऋण मोर्गन को इस सौदे के लिए उपलब्ध करवाया ताकि किसी तरह इस कंपनी को बचाया जा सके और अमेरिकी तथा विश्व बाजार में लगातार खराब हो रही स्थ्रिति को और खराब होने से बचाया जा सके।

अमेरिका ये सभी प्रमुख वित्तीय फर्मे दुनिया भर की कंपनियों को अपनी वित्तीय सेहत ठीक रखने की सलाह देकर सालाना अरबों डालर कमा रही थीं। पर दूसरों के मर्ज का इलाज करते हुए शायद उन्हें इल्म नहीं हुआ कि उनकी अपनी वित्तीय हालत काफी खराब हो चुकी है। असल में यह ज्यादा मुनाफा कमाने के कारण अनावश्यक खतरे उठाकर निवेश करने का नतीजा भी है कि कई दशकों तक खरबों डालर की पूंजी एकत्र करने वाली इन कंपनिसयों का किला ढहते हुए कुछ महीने लगे।

बैंकिंग के जटिल होते क्षेत्र में इन कंपनियों को उम्मीद थी कि उन्हें दूसरी कंपनियों से अपनी मुश्किलों को दूर करने के लिए वक्त रहते संसाधन मिल जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि दुनिया की ज्यादातर प्रमुख वित्तीय फर्मे और निवेशक पिछले दो-तीन सालों से मुदी मी मार झेलते हुए खुद संसाधनों की कमी महसूस कर रहे हैं।

अमेरिका की प्रमुख वित्तीय कंपनियों के खस्ता हाल होने से पूरी दुनिया के शेयर बाजारों में फौरी तौर पर हड़कंप मचा हुआ है। भारत सहित एशिया के कई प्रमुख शेयर बाजारों में शेयर सूचकांक औंधे मुह गिरे हैं। लेकिन ये अल्पकालीन प्रभाव हैं और इनसे उबरना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा।

समस्या आएगी इन प्रमुख वित्तीय कंपनियों का इस तरह खस्ता हाल हो जाने के दीर्घकालीन प्रभावों से।

इन भारी भरकम कंपनियों के डूबने से अमेरिकी वित्तीय बाजार में निराशाजनक माहौल है। दुनिया भर के वित्तीय बाजारों में इस माहौल का प्रभाव पड़ेगा। निवेश करने अथवा ऋण उपलब्ध करवाने को लेकर बैंकों में पहले जैसे खतरे उठाने की हिम्मत नहीं रहेगा। इक्का दुका अपवाद हो सकते हैं पर कुल मिाकर बैंकिग सेक्टर फूंक फूंक कर कदम रखेगाँ अब वो जमाना लद गया समझिए जब दोनों हाथों से निजी क्षेत्र को हर तरह का ऋण उपलब्ध करवाने की होड़ में सभी बैंक जुटे हुए थे।

भारत में कारपोरेट सेक्टर पहले ही आसान शर्तों पर बैंकों से ऋण लेने में मुश्किलों का सामना कर रहा है। मुद्रास्फीति को रोकने के लिए भारत में सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने बाजार में तरलता का प्रवाह कम करने के नजरिए से नहले ही ब्याज दरों को बढ़ा दिया है। रूपये की कीमत में लगातार हो रही गिरावट के कारण अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय फर्मो से निवेश के लिए वित्तीय संसाधन जुटाना भी मंहगा साबित हो रहा है।

अमेरिकी बाजार में मची ताजा उथल पुथल के बाद दुनिया भर के बैंक पहले से कहीं ज्यादा सावधान हो कर चलेंगे। ऐसे में कारपोरेट सेक्टर के विस्तार के लिए भारत में सस्ती दरों पर ऋण कुछ समय के लिए मुश्किल से ही उपलब्ध होगा। संकेत इस बात के हैं कि ज्यादातर कंपनियों विस्तार तो दूर अपने वर्तमान व्यवसाय को बचाने के लिए लागत कटौती में जुटी हैं। विश्व बाजार में मंदंी के कारण घटती मांग के चलते रोजगार सृजन में अग्रणी भारतीय आईटी सेक्टर और आईटी सेवाओं से जुड़ी कंपनियां पहले से ही वित्तीय दबाव महसूस कर रही हैं।

लागत कम करने के लिए भारतीय कर्मचारियों को नौकरियों से निकाले जाने की शुरूआत हो चुकी है। आने वाले दिनों में नौकरी से हाथ धोने वालो की संख्या में तेजी से इजाफा तो कोई हैरानी नहीं होगी। ऐसे में भारतीय उपभोक्ताओं की खरीद क्षमता निश्चित ही पहले से कम होगी। मुद्रास्फीति के कारण पहले से ही बाजार में मांग के अभाव की स्थितियां बन रही हैं ऐसे में नौकरियों में कमी से देश पुन: एक गहन आर्थिक मंदी की ओर जा सकता है।

केवल सरकार इस समस्या से अपने दम पर नहीं निपट सकती है। भूमंडलीकरण के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्थ विश्व बाजार में चल रही आर्थिक उठा पटक से सीधे प्रभावित होती है। इसे रोका नहीं जा सकता है। लेकिन समय रहते निजी क्षेत्र व सरकार के प्रतिनिधि इस संबंध में एक युक्त रणनीति तैयार करने की पहल जरूर कर सकते हैं।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

**

Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X