बनारस के घाटों पर तर्पण और श्राद्ध करने वालों की उमड़ी भीड़
वाराणसी, 16 सितम्बर (आईएएनएस)। वाराणसी के गंगा घाटों पर मंगलवार को तर्पण और श्राद्ध करने वालों की भारी भीड़ सुबह से ही उमड़ी हुई थी। घाट के पुरोहित अपने अपने यजमानों को पिंडदान कराने में व्यस्त थे तो सैकड़ों की संख्या में यहां उपस्थित नाई लोगों का मुंडन करने में मशगूल दिखे। क्योंकि आज से ही आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि शुरू हो गयी है, जिसमें पौराणिक मान्यता के अनुसार ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र ही अपने पितरों का तर्पण या श्राद्ध कर सकता है।
घाटों के अलावा पिशाचमोचन पोखरे पर भी भारी भीड़ जुटी हुई थी। इस पोखरे की मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से पितृगण तो तृप्त होते ही हैं साथ ही वे भी तृप्त हो जाते हैं जिनकी अकाल मृत्यु हुई होती है और वे प्रेतयोनी में भटक रहे होते हैं।
यहां आने वालों में दूसरे जिलों और राज्यों के लोग ज्यादा होते हैं, क्योंकि जो भी गया में पिंडदान करने के लिए जाता है उसे वाराणसी में पिशाचमोचन पोखरे पर पिंडदान जरूर करना पड़ता है। सबसे पहले लोग मुंडन कराते हैं उसके बाद गंगा स्नान करके तर्पण और पिंडदान करके पिशाचमोचन पोखरे पर आकर विधिवत यव, तिल, चावल और आटे से पिंडदान करते हैं।
इस बार षष्ठी तिथि की हानि की वजह से पितृपक्ष 14 दिन का पड़ रहा है। इसलिए पहले ही दिन से श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगी है। मंगलवार को चाहे पिशाचमोचन पोखरा हो या फिर गंगाघाट सभी जगहों पर तारण मंत्र गूंजते रहे।
पिशाचमोचन पोखरे के मुख्य पुरोहित राधेश्याम उपाध्याय दिनोंदिन बढ़ रही भीड़ का कारण बताते हुए कहते हैं कि एक तो पहले की अपेक्षा जनसंख्या काफी बढ़ गयी है और दूसरा कारण यह है कि आजकल आवागमन के साधन काफी बढ़ गये हैं इसलिए लोगों के आने जाने में सुविधा हो रही है। उपाध्याय बताते हैं कि पहले लोग आते थे तो एक दिन यहां जरुर ठहरते थे, लेकिन आज लोग उसी दिन गया के लिए प्रस्थान कर जाते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के जानकार डा. जानकी प्रसाद द्विवेदी पितृपक्ष की मान्यता बताते हुए कहते हैं कि यह पक्ष मुख्य रूप से पिता, पितामह और प्रपितामह के लिए होता है जिसके लिए अलग अलग मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।