इंसेफेलाइटिस का प्रकोप: 8 महीने, 211 मौतें

By गोरखपुर से <b>नरेंद्र मिश्र</b>
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Japanese Encephalitis
गोरखपुर, 9 सितम्‍बर: पूर्वी उत्तर प्रदेश में जानलेवा इंसेफेलाइटिस हर साल की तरह इस साल भी अपना कहर बरपा रही है। यह बीमारी इस साल अबतक 211 बच्‍चों को अपना शिकार बना चुकी है, जबकि 154 मरीज जिंदगी और मौत से लड़ रहे हैं।

जैपनीज इंसेफेलाइटिस के प्रति सरकार के सुस्‍त रवैये के कारण इस साल अबतक 1036 मरीज आ चुके हैं। अभी तक आये मरीजों में सबसे ज्‍यादा मरीज गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, संत कबीर नगर और बस्ती के हैं। खास बात यह है कि सरकार का दावा है कि इन जिलों में 1 से 15 वर्ष आयु तक के 95 प्रतिषत बच्चों का टीकाकरण किया जा चुका है।

चिकित्सकों की मानें तो इस बार आने वाले 80 प्रतिशत मरीज एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंडोम से ग्रसित हैं न कि जापानी इंसेफेलाइटिस। टीकाकरण के बावजूद एक हजार से ज्‍यादा मरीजों का आना सरकारी टीकाकरण के दावों को खोखला साबित कर चुका है।

पिछले तीन दशकों से अपने पैर पसारे हुए यह बीमारी अबतक करीब 12000 बच्चों की जान ले चुकी है। यही नहीं एक लाख से अधिक बच्‍चों को अपनी चपेट में ले चुकी है।

इस जानलेव बीमारी से पिछले तीस साल से औसतन हर साल 700 बच्‍चों को अपना शिकार बना रही है। 2005 में जब इस बीमारी से 2000 से अधिक मौते हुई, तब इस बीमारी को लेकर सरकार की आंख खुली। लेकिन बीमारी को लेकर हुई राजनीति ने सरकार की आंखों पर फिर से पर्दा डाल दिया। सरकार की ओर से कई घोषणाएं हुईं, लेकिन तमाम घोषणाएं कागजों तक सीमित रह गईं। आज भी कई घोषणाएं पूरी तरह अमल में नहीं लायी जा सकी हैं।

इंसेफेलाइटिस का कहर पूर्वी उत्‍तर प्रदेश के किसी एक जिले में नहीं बल्कि गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, संत कबीर नगर और बस्ती समेत बिहार और नेपाल के सटे हुए क्षेत्रों में इस बीमारी ने मौत का जाल फैला रखा है।

पूर्वी उत्‍तर प्रदेश की इस सबसे बड़ी बीमारी के इलाज की बात करें तो चिकित्सा के नाम पर केवल एक संस्‍थान है। वो है गोरखपुर का बाबा राघवदास मेडिकल कालेज।

गौरतलब है कि जापानी इंसेफेलाइटिस वो मच्छर जनित बीमारी हैं, जिसके वायरस क्यूलेक्स टाइटेनियोरिंकस प्रजाति के मच्छरों से मनुष्य में पहुंचते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक ये मच्छर मुख्य रूप से धान के खेतों में प्रजनन करते हैं और सुअर मनुष्‍य और मच्छर के बीच में वाहक का कम करते हैं। यही कारण है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के धान वाले ग्रामीण क्षेत्र इस बीमारी से सर्वाधिक प्रभावित हैं।

इस बीमारी पर लम्बे समय से शोध और अध्ययन कर रहे डा संजय श्रीवास्तव का कहना है कि इस महामारी से लोगों को बचाने के लिये गंभीर प्रयास नहीं हो रहे हैं। वे कहते हैं कि प्रतिवर्ष मौतें हो रही हैं और सरकारें सिर्फ घोषणायें करती हैं, लेकिन उन पर पूरी तरह अमल आज तक नही हुआ। यही कारण है कि पिछले तीस वर्षों से आज तक पूर्वांचल को इस बीमारी से निजात नहीं मिल सकी है।

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