वैज्ञानिक कहते हैं नहीं मिटेगी धरती
नोबेल प्राइज विनर वैज्ञानिक फ्रैंक विलजेक भी इस मिशन में हैं और उन्हें मशीन रोकने के लिए जानलेवा धमकी तक मिली हैं। फ्रैंक कहते हैं कि मुझे इस बात पर गुस्सा आता है कि कैसे कई लोगों को गुमराह किया गया है।
सुरक्षा
के
उपाय
प्रयोग
के
दौरान
इस्तेमाल
में
लाई
जाने
वाली
परखनली
के
प्रत्येक
चरण
का
परीक्षण
किया
गया
है।
सुरक्षा
की
दृष्टि
से
इसमें
बड़े
बड़े
मैग्नेट्स
लगाए
गए
हैं
जो
सुपर
कंडक्टिंग
प्रकृति
के
हैं।
जिन
तारों
के
गुच्छे
में
आवेशित
कणों
का
प्रवाह
किया
गया
है
वह
लिक्वीडेटर
से
जुड़े
होने
के
कारण
ठंडे
रहते
है।
यह
इसे
ठंडा
बनाए
रखता
है
जिससे
विस्फोट
की
गुंजाइश
नहीं
रहती
है।
20
सालों
से
चल
रहा
है
काम
यूरोपीय
परमाणु
एजेंसी
के
नेतृत्व
में
विश्व
के
80
देशों
के
वैज्ञानिक
और
तकनीकी
विशेषज्ञ
20
वर्षो
से
इस
परियोजना
पर
काम
कर
रहे
हैं।
उन्होंने
बताया
कि
इस
एक्सपेरिमेंट
से
मेडिकल
रिसर्च
को
काफी
फायदा
हो
सकता
है।
इससे
निकलने
वाले
प्रोटॉन,
कार्बन
आयन
और
यहां
तक
कि
ऐंटी-मैटर
की
पार्टिकल
बीम
का
कैंसर
के
इलाज
में
इस्तेमाल
हो
सकता
है।
प्रयोग
से
होने
वाले
लाभ
मशीन
को
चालू
करने
पर
साल
भर
में
इतना
डेटा
इकट्ठा
होगा
कि
करीब
5.6
करोड़
सीडी
भर
जाएं।
इसका
मतलब
है
कि
वैज्ञानिकों
को
ऐसे
काबिल
सिस्टम
डिवेलप
करने
होंगे
जो
इतने
आंकड़ों
को
हैंडल
कर
सकें।
यह
ग्रिड
इस
तरह
के
काम
के
लिए
एक
मॉडल
साबित
होगी।
इस
प्रयोग
में
प्रोटॉन
की
एक
बीम
को
सीसे
या
लेड
के
टुकड़ों
पर
डाला
जाएगा।
इससे
एक
और
सब-अटॉमिक
पार्टिकल,
'न्यूट्रॉन'
निकलेंगे।
माना
जा
रहा
है
कि
इन
न्यूट्रॉनों
के
सहारे
विषैले
परमाणु
कचरे
को
नुकसान
न
पहुंचाने
वाले
पदार्थों
में
बदला
जा
सकेगा।