संतान प्राप्ति की कामना से कुंड में स्नान के लिए आते हैं लोग
वाराणसी, 8 सितम्बर (आईएएनएस)। धर्म, अध्यात्म और मोक्ष की नगरी काशी में एक ऐसा अंधविश्वास सदियों से कायम है कि यदि नि:संतान दंपति कुछ नियमों का पालन करते हुए यहां एक साथ स्नान करें तो इच्छित संतान की प्राप्ति होगी।
इसी अंधविश्वास और संतान प्राप्ति की इच्छा लिए भाद्रपद की सूर्य षष्ठी के दिन वाराणसी के भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में भारी संख्या में दंपति डुबकी लगाते हैं। ऐसा विश्वास है कि उस दिन लगभग 70 फुट गहरे और 20 फुट व्यास वाले इस लोलार्क कुंड के थोड़े से पानी में नहाने वाले दीर्घायु भी होते है।
भाद्रपद की षष्ठी के दिन इस कुंड में जहां स्नान करने का विशेष महत्व बताया जाता है वहीं यहां स्नान करने का तरीका भी बड़ा रोचक है। यहां स्नान करने वाले दंपतियों को साथ स्नान करना पड़ता है लेकिन महिला जब स्नान करने जाती है तो वह पूर्ण रूप से वह विधवा के रूप में होती हैं। उसके शरीर पर कोई जेवर नहीं होता।
एक और अंधविश्वास है कि कुंड में स्नान करने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। इस बारे में वाराणसी की मशहूर स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. इंदू सिंह कहती हैं कि पहले तो स्नान करने से बच्चा पैदा होने का कोई संबंध नहीं है। पति या पत्नी में किसी कमी के कारण ही महिला गर्भधारण नहीं पाती है, जिसका हल इलाज है। दूसरी बात कि छोटे से कुंड के स्थिर पानी में एक ही दिन लाखों लोगों के स्नान करने से चर्म रोग हो जाएगा न कि चर्म रोग ठीक होगा।
डा. मधुलिका सिन्हा ने कहा कि कुंड के बारे में हमने भी सुना है लेकिन उसमें पढ़े-लिखे लोग कभी स्नान करने नहीं जाते हैं। सिन्हा ने कहा कि इसमें अंधविश्वास की शिकार महिलाएं ही आती हैं।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. ओ. पी. उपाध्याय का तो यहां तक कहना है कि यहां संतान प्राप्ति के अंधविश्वास के अलावा अब लिंग भेद को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, जिस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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