एशिया के सबसे बड़े गणपति इंदौर में
गणेशजी की इस भव्य प्रतिमा का निर्माण 107 साल पहले 17 जनवरी 1901 को पूर्ण हुआ था। इसे मूर्त रूप देने में ढाई साल लगे थे। इसे बनाने में ईंट, बालू, चूना और मेथी के दाने के मसाले का इस्तेमाल किया गया था। इसमें सभी तीर्थ स्थानों का जल और काशी, अयोध्या, अवंतिका और मथुरा की मिट्टी को मिलाने के साथ ही घुड़साल, हाथीखाना, गोशाला की मिट्टी और रत्नों में हीरा पन्ना, पुखराज, मोती, माणिक आदि का भी समावेश है।
बड़ा गणपति के पुजारी पंडित धनेश्वर दधीची बताते हैं कि उनके दादा नारायण दधीची ने इस भव्य प्रतिमा को बनाने का संकल्प लिया था। इस प्रतिमा में मुख सोने व चांदी, कान, हाथ तथा सूड़ तांबे से और पैर लोहे के सरियों से बनाए गए हैं। बैठक मुद्रा में गणपति की इस प्रतिमा की ऊंचाई 25 फुट है। दधीची बताते हैं कि अन्य देवी देवताओं की तो इससे बड़ी बड़ी मूर्तियां हैं मगर एशिया में विराजे हुए गणेशजी की इतनी बड़ी प्रतिमा कहीं नहीं है। यह प्रतिमा चार फुट ऊंचे और चौदह फुट चौड़ी चौकी पर विराजी है।
पंडित दधीची के अनुसार प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के तेरह साल बाद तक इसके ऊपर कोई छत नहीं थी और गणपति खुले आकाश के नीचे विराजे थे। बाद में टीन के पातरों से छत बनाई गई और 1954 में स्थाई छत का निर्माण किया गया। बड़ा गणपति को साल में चार बार चोला चढ़ाया जाता है। चोला को एक बार चढ़ाने में 15 दिन लग जाते हैं। चोला एक मन का होता है जिसमें 25 किलोग्राम सिंदूर और 15 किलोग्राम घी का मिश्रण होता है।
ये गणपति लोगों की आस्था का केन्द्र बन चुके हैं। लोगों की मान्यता है कि यहां उनकी हर मनौती पूरी होती है। आम दिनों पर भक्तों की भीड़ रहती है मगर गणेश उत्सव पर यहां का नजारा ही निराला है। इंदौर ही नहीं आसपास के क्षेत्र और देश के अनेक हिस्सों से श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।