कोसी से दूर जाना चाहते हैं बाढ़ पीड़ित
पटना, 4 सितम्बर (आईएएनएस)। बिहार में प्रलयंकारी कोसी नदी की चपेट में आने के बाद बाढ़ पीड़ितों को अब भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है। वे बस भागे जा रहे हैं। कहां जाना है, कैसे जाना है, क्या करना है, इन सभी के बारे में उन्हें कुछ भी पता नहीं है। वे सभी बस जैसे-तैसे कोसी के इलाके से दूर जाना चाहते हैं।
कोसी ने बिहार में धारा क्या बदली, लोगों की राह ही बदल गई। बाढ़ पीड़ितों के लिए इन दिनों उत्तर बिहार का कटिहार रेलवे स्टेशन एक राहत शिविर बन गया है। यहां लगभग आठ हजार बाढ़ पीड़ित रह रहे हैं। वे सभी आज भी उस मनहूस घड़ी को याद कर सिहर उठते हैं जब कोसी के पानी ने अचानक इनके घरों को तबाह कर डाला।
कटिहार रेलवे स्टेशन पर मधेपुरा जिला के मुरलीगंज निवासी अजय कुमार बताते हैं कि 18 अगस्त की रात वे अपने घर में खड़े थे। अचानक उनके पैरों में ठंडेपन का एहसास हुआ। इससे पहले कि वे कुछ सोच पाते, उनके पानी उनकी कमर तक आ चुका था।
अजय ने बताया कि इसके बाद तो अफरा-तफरी मच गई। सभी लोग अपनी जान बचाने में लगे थे। यहां तक कि कई लोग तो अपने परिवारों को बीच मझधार में छोड़ भाग निकले।
सुपौल के भीमनगर निवासी माधव यादव पूरे परिवार के साथ गत चार दिनों से कटिहार रेलवे स्टेशन पर हैं। उन्हें नहीं मालूम की वे कहां जाएंगे और क्या करेंगे। चिन्तित माधव बताते हैं कि उनका सब कुछ बर्बाद हो चुका है। रोजगार के लिए भी कुछ नहीं बचा। वे मायूसी से कहते हैं, "भगवान ने लूटा है भगवान ही बसायेंगे। "
कटिहार रेलवे स्टेशन पर एक ऐसा परिवार भी है, जो इस घड़ी में भी खुशी के आंसू बहा रहा है। अररिया के सुरसर निवासी वीरेन्द्र राय का एक बेटा दस दिन पूर्व खो गया था लेकिन बुधवार को वह कटिहार रेलवे स्टेशन पर ही मिल गया। वीरेन्द्र का मानना है कि अब उसे सबकुछ मिल गया है।
उधर, कटिहार क्षेत्र के क्षेत्रीय रेल प्रबंधक (डीआरएम) बाबू लाल रैकवाड़ ने आईएएनएस को बताया कि कटिहार रेलवे स्टेशन पर बाढ़ पीड़ितों के लिए रेलवे द्वारा राहत शिविर चलाए जा रहे हैं, जिनमें पीड़ितों के लिए खाने और चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। इसके अलावा भी यहां कई गैरसरकारी संगठन बाढ़ पीड़ितों की मदद कर रहे हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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