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वाराणसी में बंदर की अदाओं से जनता कायल

By Staff
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वाराणसी, 31 अगस्त (आईएएनएस)। आम धारणा है कि बंदर अपने स्वभाविक लक्षणों की वजह से इंसान से दूर रहता है, लेकिन वाराणसी के सारनाथ इलाके में रहने वाला एक बंदर ऐसा है जो अपने इस स्वभाव के विपरीत है। इंसान से अपनी नजदीकियों के कारण आजकल यह बंदर चर्चा में है।

यह बंदर सारनाथ में मूलगंध कुटी बिहार मंदिर के सामने एक चाय की दुकान पर सुबह-सुबह आ जाता है और पूरे दिन सारनाथ घूमने आने वालों का मनोरंजन करता रहता है। खास बात यह है कि यदि इस बंदर को कहीं आना जाना होता है, तो वह पैदल नहीं जाता है। सड़क पर आकर वह किसी रिक्शे पर बैठ जाता है और निश्चित दिशा में चलने का इशारा करता है और जहां उतरना होता है, वह उतर कर चल देता है।

यही नहीं जब इस जनाब को थकान या आलस महसूस होता है, तब वे गरम चाय का चुस्कियां लेता है। मस्ती के दौर में कभी-कभी कोल्ड ड्रिंक पीकर मस्त हो जाता है।

पालतू लगने वाला यह बंदर इस क्षेत्र के लोगों के बीच रहकर ही बड़ा हुआ है। बचपन से ही इस बंदर को देख रहे बनवारी लाल ने बताया, "जब यह बंदर यहां आया था तब वह करीब एक साल का रहा होगा, उस समय भी यह लोगों के घरों में बच्चों के बीच ही रहता था। शुरू-शुरू में तो लोग इससे डरते थे, लेकिन बाद में सभी इससे घुल-मिल गए"।

बनवारी लाल बताते कि आजकल तो इसका ठाट है, क्योंकि अब यह साहब पैदल नहीं चलते हैं। सुबह की चाय से इसके दिन की शुरुआत होती है और दिन में यह कोल्ड ड्रिंक का मजा लेता है। खान-पान में कम नखड़े नहीं करता। साहबजादे को पान, सुर्ती और गुटखे से भी प्याार हो गया है।

इसकी इन अदाओं पर देशी तो देशी, विदेशी पर्यटक भी मर मिटते हैं। जर्मनी से सारनाथ घूमने आई एलिसा इसे प्रतिदिन कोल्ड ड्रिंक पिलाती है। जितने केले वह खा सकता है, उतने केले उसे खिलाती है। एलिसा ने कहा, "इतना विचित्र और प्यारा बन्दर मैंने कभी नहीं देखा।"

इस बंदर ने अपनी आदतों व अदाओं से सभी को अपनी तरफ आकर्षित कर लिया है और सभी का दुलारा बन गया है। जिस दुकान पर वह प्रतिदिन बैठता है, उसके मालिक हरिनारायण ने बताया, "इस बंदर की कुछ खास विशेषताएं हैं। जैसे यह एक ही रिक्शे की सवारी करता है। एक ही दुकान पर बैठता है तथा सभी के देने पर खाता भी नहीं है।

उन्होंने कहा कि जो इसको कुछ खिलाना चाहता है वह हमें दे देता है और मैं इसे खिला देता हूं। धीरे-धीरे इस बंदर को लेकर तरह-तरह के मिथक भी बनने लगे हैं। दीनानाथ नाम का रिक्शा चालक कहता है कि जिस दिन यह हमारे रिक्शे पर नहीं बैठता है, उस दिन हमारा धंधा ठीक से नहीं चलता है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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