क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

अहमद फराज के साथ ही अदबी प्रतिरोध की मुखर आवाज का अंत

By Staff
Google Oneindia News

नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। आधुनिक उर्दू शायरी के आधार स्तंभों में से एक अहमद फराज का सोमवार 25 अगस्त को इस्लामाबाद में इंतकाल हो गया। इसके साथ ही पाकिस्तानी अदब में प्रतिरोध की एक बेहद मुखर आवाज खामोश हो गई।

नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। आधुनिक उर्दू शायरी के आधार स्तंभों में से एक अहमद फराज का सोमवार 25 अगस्त को इस्लामाबाद में इंतकाल हो गया। इसके साथ ही पाकिस्तानी अदब में प्रतिरोध की एक बेहद मुखर आवाज खामोश हो गई।

जनवरी 1931 में जन्मे फराज, बीसवीं सदी के प्रगतिशील शायरों कैफी आजमी, अली सरदार जाफरी और फैज अहमद फैज की जमात की आखिरी मशाल थे। लगातार फौजी शासन की त्रासदी झेलने वाले अपने देश में वे लगातार उर्दू अदब की ओर से जम्हूरियत के लिए आवाज बुलंद करते रहे। फराज ने एक बार खुद स्वीकार किया था कि पाकिस्तान में विरोध की कविता दम तोड़ चुकी है। उन्होंने कहा था कि भले ही जनता का विरोध बाकी हो लेकिन शायरी में वह अब देखने को नहीं मिलता।

मीर तकी मीर और मिर्जा गालिब को अपना आदर्श मानने वाले फराज ने अपनी शायरी की शुरुआत तो रुमानियत से की लेकिन जल्द ही उनका रुख आम आदमी के सरोकारों की ओर हो गया। उन्होंने अवाम की रोजमर्रा की परेशानियों से लेकर मुल्क की आला हुकूमत की खिंचाई तक हर उस मसले पर अपनी पैनी कलम चलाई जो किसी न किसी तरह इंसानियत से साबका रखती थी।

'यही कहा था मेरी आंख देख सकती है / तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना (नेत्रहीन)', 'शहर वालों की मुहब्बत का मैं कायल हूं मगर / मैंने जिस हाथ को चूमा वही खंजर निकला' जैसे अपने शेरों और गजलों के सहारे उन्होंने अपने दुख, अपनी कोफ्त को सार्वजनिक किया।

उन्होंने पाकिस्तान में फौजी हुकूमत की खुलकर आलोचना की। जनरल जिया उल हक के शासन काल में तो उन्हें एकांत कारावास में डाल दिया गया था। बाद के समय में उन्होंने देश ही छोड़ दिया और एक लंबे अरसे तक यूरोप में स्वनिर्वासित जीवन बिताया। सन 2004 में उन्हें पाकिस्तान का सबसे बड़ा सम्मान 'हिलाल ए- इम्तियाज' दिया गया था, जिसे उन्होंने बाद में विरोध स्वरूप वापस कर दिया था।

मशहूर पाकिस्तानी गायक मेहंदी हसन ने उनकी एक गजल 'रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ' को इतनी खूबसूरती से गाया कि यह जमाने में उनकी पहचान बन गई । यहां तक कि खुद एक बार फराज ने कहा था कि यह गजल तो अब मेहंदी हसन की हो चुकी।

फराज की मौत पर पाकिस्तान के एक अखबार ने उन्हें कुछ इस तरह याद किया- 'खाली हाथों को कभी गौर से देखा है फराज / किस तरह लोग लकीरों से निकल जाते हैं / जाने वाले को न रोको कि भरम रह जाए / तुम पुकारो भी तो कब उसको ठहर जाना है / सिर्फ ये सोच कर तुमसे मुहब्बत करते हैं फराज / मेरा तो कोई नहीं, तुम्हारा तो कोई हुआ / वो जिस के पास रहता था दोस्तों का हुजूम / सुना है फराज, कल रात एहसास-ए- तनहाई में मरा।' अलविदा फराज, अलविदा।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

**

Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X