कृष्ण भक्ति ने मार्टिन को बना दिया साक्षी दास
इंदौर, 25 अगस्त (आईएएनएस)। भक्ति का रंग जब किसी पर चढ़ता है तो वह सारी हदें पार कर जाता है। कहा गया है कि भक्त और साधु की कोई जात नहीं होती। इसी का उदाहरण हैं कृष्ण भक्त मार्टिन मसीह, जिन पर कृष्ण भक्ति और प्रेम का रंग कुछ इस तरह चढ़ा कि वे ईसाई धर्म त्यागकर सर्व साक्षी दास हो गए।
शरीर पर सफेद धोती, कुर्ता और उस पर हरे कृष्णा की चदरिया, गले में तुलसी की माला और माथे पर चंदन का टीका मार्टिन मसीह की जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। कभी ईसाई धर्म के अनुयाई रहे मार्टिन मसीह शांति की तलाश में वषों तक गिरिजाघरों में जाते रहे, मगर उन्हें शांति नहीं मिली। यही नहीं, शांति की तलाश में मार्टिन राम स्नेही संप्रदाय, चिन्मय मिशन और कई अन्य संप्रदायों से जुड़े, लेकिन उन्हें वह नहीं मिला जिसकी उन्हें तलाश थी।
मार्टिन मसीह बताते हैं कि 12 साल पहले उन्हें इस्कान मंदिर आने का मौका मिला। यहां आने पर उन्हें अलग तरह की अनुभूति हुई। उन्होंने जब गीता पढ़ी तो उनका हृदय ही परिवर्तित हो गया।
एक निजी कंपनी में प्रबंधक के तौर पर कार्यरत मार्टिन मसीह का परिवार में भी विरोध हुआ, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और कृष्ण को जानने तथा मंदिर के कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के सिलसिले को जारी रखा।
मार्टिन मसीह बताते हैं कि उन्होंने परिवार के विरोध के चलते घर तक छोड़ने की ठान ली थी। बाद में परिवार के सदस्य भी उनकी बात से सहमत हुए और अब सभी लोग श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाने लगे हैं।
कृष्ण भक्ति के कारण मार्टिन मसीह को नया नाम भी मिल गया है और वह है सर्व साक्षी दास। कागजी तौर पर उन्होंने अपना नाम संतोष चिचलानी रख लिया है। वे कहते हैं कि चाहे ईसा मसीह हों या पैगंबर मोहम्मद, दोनों ने ही अपने को ईश्वर का दूत बताया हैं, जबकि गीता में श्रीकृष्ण ने अपने को परमात्मा बताते हुए पूजने की बात कही है। इसी लिए वे देवता के पुजारी बन गए हैं। उन्हें ईसाई नीति से कृष्ण नीति अच्छी लगी हैं इसी लिए वे कृष्ण को पूजते हैं।
मार्टिन मसीह को कृष्ण भक्ति के चलते दोस्त और परिवार के सदस्य मानसिक रोगी मानने लगे थे, मगर धीरे-धीरे हालात बदले और पूरा परिवार ही अब उनके साथ खड़ा है। मार्टिन के पूरे परिवार ने मांसाहार त्याग दिया और दाल रोटी व दही खाते हैं। मार्टिन के दिन में तीन घंटे मंदिर में गुजरते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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