कम मशहूर खिलाड़ियों की सफलता ने छुपा ली कद्दावरों की नाकामी
बीजिंग, 23 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय खिलाड़ियों का अंतिम जत्था जब स्वदेश लौटेगा, तब जाहिर तौर पर भारत में उत्सव का माहौल होगा। इसका कारण यह है कि भारत ने ओलंपिक में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। भारत को बीजिंग ओलंपिक में एक स्वर्ण और दो कांस्य पदक मिले हैं।
बीजिंग, 23 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय खिलाड़ियों का अंतिम जत्था जब स्वदेश लौटेगा, तब जाहिर तौर पर भारत में उत्सव का माहौल होगा। इसका कारण यह है कि भारत ने ओलंपिक में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। भारत को बीजिंग ओलंपिक में एक स्वर्ण और दो कांस्य पदक मिले हैं।
अभिनव बिंद्रा के अलावा बीजिंग में पदक जीतने वाले बाकी दो खिलाड़ी, पहलवान सुशील कुमार और मुक्केबाज विजेंदर कुमार 'लोप्रोफाइल' (कम प्रसिद्ध) थे। ओलंपिक की शुरुआत से पहले इन दोनों का नाम बहुत कम लोगों को पता था।
बीजिंग ओलंपिक से शोहरत बटोरने वालों की सूची में मुक्केबाज अखिल कुमार और जितेंदर कुमार तथा बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल शामिल हैं। इन कम प्रसिद्ध खिलाड़ियों की सफलता ने बीजिंग में कद्दावरों की नाकामी को पूरी तरह ढंक दिया।
टेनिस में जहां महेश भूपति और लिएंडर पेस तथा सानिया मिर्जा जैसे बड़े नाम नाकाम हुए, वहीं निशानेबाजी में गगन नारंग, समरेश जंग, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, मानवजीत सिंह संधू, अंजलि भागवत और एथलेटिक्स में अंजू बॉबी जार्ज जैसे 'बड़े नामों' ने निराश किया।
बेशक निशानेबाजी में भारत को स्वर्ण पदक मिला, लेकिन कुल मिलाकर बीजिंग गए लगभग सभी बड़े स्टार नाकाम रहे।
बीजिंग ओलंपिक की शुरुआत से पहले आशा जताई जा रही थी कि हमारे कुछ खिलाड़ी कम से कम फाइनल में स्थान बनाने में सफल रहेंगे, लेकिन हुआ इसके उलट। 14 स्पर्धाओं में हमारे नौ निशानेबाजों ने किस्मत आजमाई, लेकिन एक (बिंद्रा) ही फाइनल में पहुंच सका। अच्छी बात यह है कि फाइनल में पहुंचने वाले एकमात्र निशानेबाज ने सीधा स्वर्ण पर निशाना लगाया।
एथेंस ओलंपिक में निशानेबाजों ने अपेक्षाकृत बढ़िया प्रदर्शन किया था। हमारे तीन निशानेबाज फाइनल में पहुंचे थे, जबकि हमें एक पदक (रजत) मिला था।
अस्सी साल में पहली बार हॉकी टीम की चुनौती समाप्त होने के बाद निशानेबाजों से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन बिंद्रा को छोड़कर कोई भी इस कसौटी पर खरा नहीं उतर सका।
बीजिंग में हमारे एथलीटों में भी बेहद निराश किया। 16 सदस्यीय दल का एक भी सदस्य फाइनल में जगह नहीं बना सका। और तो और कोई भी अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन तक नहीं कर सका।
निशानेबाजी, मुक्केबाजी, कुश्ती और बैडमिंटन को छोड़ दिया जाए तो हमारे खिलाड़ियों ने बस बीजिंग जाने की रस्म अदा की। तैराकी, नौकायन, रोइंग, एथलेटिक्स और टेबल टेनिस में तो हमारे खिलाड़ी प्रतिस्पर्धा में दिखे ही नहीं।
ऐसे में एक बड़ा सवाल उठता है कि सिर्फ खानापूर्ति के लिए खिलाड़ियों को ओलंपिक जैसी शीर्ष प्रतियोगिता में भेजना कितना जायज है?
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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